मेहदी हसन साहब के अलबम 'कहना उसे' से एक ग़ज़ल आप पहले भी सुन चुके हैं. आज सुनिये इसी संग्रह की शीर्षक ग़ज़ल:
कोपलें फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे
वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे
वक़्त का तूफ़ान हर इक शै बहा के ले गया
कितनी तन्हा हो गई है रहगुज़र कहना उसे
जा रहा है छोड़ कर तनहा मुझे जिसके लिए
चैन ना दे पाएगा वो सीम-ओ-ज़र कहना उसे
रिस रहा हो ख़ून दिल से लब मगर हंसते रहें
कर गया बरबाद मुझ को ये हुनर कहना उसे
जिसने ज़ख़्मों से मेरा'शहज़ाद' सीना भर दिया
मुस्करा कर आज प्यारे चारागर कहना उसे
(सीम-ओ-ज़र: धन-दौलत, चारागर: चिकित्सक)
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
18 comments:
वाह !
इसी ऐलबम में एक और जबर्दस्त गज़ल है 'तन्हा-तन्हा मत सोचा कर.....' जो मुझे बहुत पसंद है. डाल दें तो क्या कहने !
प्रियंकर जी,
ज़रा इसी पोस्ट पर लगे लिंक पर क्लिक कर के देखें.
वाह... ये गजल सुनवाने के लिए शुक्रिया , मेहदी हसन साहब मेरी पसंदीदा गायकों में से हैं
दर्द, हसीन लम्हे, कहना उसे... इन एल्बमों का नाम और इनकी ग़ज़लें यहाँ देख-सुनकर मुझे अचरज ज़्यादा है या ख़ुशी, कह नहीं सकता. 80 के दशक में मैंने इन्हें चुन-चुन के ख़रीदा था और जम-जम के सुना था, पर उसके बाद न तो किसी से इनका ज़िक्र सुना और न ख़ुद ही उन कैसेटों को वापस प्लेयर में डाला. अब जब आपके ब्लॉग पर ये पोस्टिंग देखता हूँ तो वो सारा ज़माना आँखों के सामने से गुज़र जाता है. शुक्रिया.
sundar gajal. sunane ke liye aabhar.
बेहद खुबसूरत सुनाने के लिए शुक्रिया
वाह!!ये गजल सुनवाने के लिए शुक्रिया!
जब तक ये गज़ल चलती रही,
सिर्फ बाग, पत्तियाँ और नज़ारे ही आबाद लगे..
और कुछ था ही नहीँ !
ये आवाज़ की जादूगरी है ..
-लावण्या
बोफ़्फ़ाइन सैप,
यह उम्दा रचना मेरे ख्याल से शहज़ाद की है.अगर मैं गलत हूं तो सही जानकारी देवें.
आप तो गजब प्रस्तुतियां कर रहे हैं बधाई लेवें..
सिद्धेश्वर बाबू, यह उन्हीं फ़रहत शहज़ाद साहब की ग़ज़ल है. आपने बधाई दी सो हमने ली. जैहिन्द!
इसे सुनवाने का तो शुक्रिया लीजिए लेकिन एक प्रॉब्लम और है। इसे सुनते हुए एक शेर याद आया था अधूरा सा, अब दिमाग़ में अटका पड़ा है, किसी को पता हो तो पूरा करें प्लीज़-
या इलाही, वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे उनको.........और, जो न दे मुझको जु़बां और।
जिंदाबाद मेरे भाई सुरों के सम्राट से ये ग़ज़ल सुनवाने के लिए...उनकी आवाज मुझे कोई २५-३० साल पहले की दुनिया में ले जाती है जब उनकी तूती बोला करती थी....वाह भाई वाह. शुक्रिया.
नीरज
ज़रा देर से यहां आने की माफ़ी अता फ़रमाएं.ये लीजिए मिर्ज़ा नौशा चचा का शेर:
यारब, न वो समझे हैं, न समझेंगे मिरी बात
दे और दिल उनको, जो न दे मुझ को ज़बां और
और कोई प्रॉब्लम!
सही कहा आपने। यही था और मुझे अधूरा ही नही ग़लत भी याद आ रहा था। शुक्रिया।
shukriya......unki aavaj ka jadoo hamesha sar chadke bolega....hamesha hi...
इसे सुनवाने के लिए आपको दिल से धन्यवाद !
वो न समझाए .....
मैं तेरी याद को इस दिल से भुलाता कैसे
तू कोई रेत पे लिखी हुई तहरीर नहीं
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