जनाब अहसान दानिश की यह ग़ज़ल मुझे इस एक ख़ास शेर के कारण बहुत ऊंचे दर्ज़े की लगती रही है:
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे
और जब गाने वाले उस्ताद मेहदी हसन हों तो और क्या चाहिये.
यूं न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूं देख के हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे अहसान किया हो जैसे
(मौज-ए-सबा: हवा का झोंका, शिर्क: ईश्वर को बुरा भला कहना - Blasphemy)
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
11 comments:
... लोग यूं देख के हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
बहुत अच्छी गज़ल सुनाने का धन्यवाद.
वाह वाह
बहुत खूब.
बहुत आनंद आया.
आपको धन्यवाद.
subhan allah.......ek aor baat aapka aor hamara chittha ke template bhi ek hai.
बहुत सुंदर ...शुक्रिया इसको सुनवाने का
लोग यूं देख के हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे
मालिक, आज कल हद कर दी है आप ने. ये शेर हैं ??
शुक्रिया इसको सुनवाने का
bahut sundar...shukriya
kya baat hai...har sher khubsurat
क्या बात है...दोनों उस्ताद एक साथ...एक शायरी का और एक गायकी का...वाह
नीरज
अगर कभी शुक्रिया न भी कर सकें तो जारी रखिएगा सिलसिला। बेहतरीन । कल देर शाम तक बार-बार कोशिश करने पर भी सुना नहीं जा सका, बाद में ख़ूब सुना, देर रात तक और आज भी।
वाह.. इत्ती सुन्दर, शुक्रिया सुनवाने के लिये
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