लगातार बारिशें हैं मेरे नगर में कई-कई दिनों से.
सब कुछ गीला-सीला.
हरा-सलेटी.
भावनात्मक रूप जुलाई और अगस्त मेरे सबसे प्यारे और उतने ही कष्टकारी महीने होते हैं. उस्ताद मेहदी हसन साहब की संगत में सालों - साल इन महीनों को काटने की आदत अब पुरानी हो चुकी है. नोस्टैज्लिया शब्द इस क़दर घिसा लगने लगता है उस अहसास के आगे जो, भाई संजय पटेल के शब्दों में उस्ताद के आगे नतमस्तक बैठे रहने में महसूस होता है.
अहमद नदीम क़ासमी (नवम्बर 20, 1916 – जुलाई 10, 2006) की ग़ज़ल पेश है:
क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला
ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला
तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला
जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने
बू उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला
तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला
(तिश्नगी: प्यास)
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
5 comments:
मालकौंस से सोहनी की तरफ़ जाना यानी किसी काले जादू से रूबरू होना है.
जैसे जादूगर पूछता है बोलो इस झोले में क्या रखा था....जवाब:फूल ?
और निकल जाए गुलदान...तो ये कब मुमकिन है कि जब जादूगर ने रियाज़ किया
हो जादू की कला का. मेहंदी हसन एक अय्यार बन गए हैं सुरों के.मालकौंस
के सुरों से खेलते हुए वे अंतरा आते आते कितनी आसानी से सोहनी पर
आ जाते हैं ये ख़ाँ साहब की तपस्या का प्रतिफ़ल है. सुर की देवी जैसे निहाल
हुई जाती है उन पर.
अच्छा ग़ज़ल गायन दर असल कुछ और नहीं
पूरा खेल है कविता को पीने का .
परखने लफ़्ज़ को मेहंदी साहब जैसे बहला रहे हैं ,
ये उनकी शायरी की सूझ की पावती है.
गले से तो सब गा लेते हैं ...
मेहंदी हसन साहब जब गाएँ तो आत्मा,दिमाग़,ह्रदय
और उनके कंठ से शायर भी गा रहा होता है.
मेहंदी हसन,बेगम अख़्तर,तलत मेहमूद
ने तप से साधा है अपना गायन
.... उन्हें सुनने के लिये
भी कुछ ऐसे ही तप की ज़रूरत है
...महज़ दिल का बहलावा भर
नहीं इन सब का गाना.
मेह्दीं हसन की जादुगरी, ऐय्यारी खूबसूरत!!
Transition from Malkauns to sohonee fabulas & effortless.
a Great treat indeed!!
बहुत सुन्दर व मधुर ग़ज़ल सुनवाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
आनन्द आया गज़ल सुनकर.
wah!!! aur kya kah saktey hain..yahan aakar...bada sukuun hai
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