Thursday, July 10, 2008

इस वक़्त कोई मेरी क़सम देखता मुझे

बहुत ही कम आयु में दिवंगत हो गए अद्वितीय गायक मास्टर मदन की एक ग़ज़ल आपने चन्द दिन पहले सुनी थी. जैसा मैंने वायदा किया था, सुनिये मास्टर मदन की आवाज़ में साग़र निज़ामी की एक और ग़ज़ल



हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
तुम ने बना दिया है मोहब्बत में क्या मुझे

हर मंज़िल-ए-हयात से गुम कर गया मुझे
मुड़ मुड़ के राह में वो तेरा देखना मुझे

कैसे ख़ुशी ने मौज को कश्ती बना दिया
होश-ए-ख़ुदा अब न ग़म-ए-नाख़ुदा मुझे

साक़ी बने हुए हैं वो साग़र शब-ए-विसाल
इस वक़्त कोई मेरी क़सम देखता मुझे

4 comments:

मुनीश ( munish ) said...

subhu ko sunenge ! mast layout hai blog ka ye to!

मुनीश ( munish ) said...

suni sahab ! vaaaaaaah!

बाबुषा said...

कैसे खुदी ने मौज को नहीं. कैफ़-ए- खुदी ने मौज को.

बाबुषा said...

कैफ़े ख़ुदी ने मौज को कश्ती बना दिया
होशे-ख़ुदा है अब न ग़मे-नाख़ुदा मुझे