बहुत ही कम आयु में दिवंगत हो गए अद्वितीय गायक मास्टर मदन की एक ग़ज़ल आपने चन्द दिन पहले सुनी थी. जैसा मैंने वायदा किया था, सुनिये मास्टर मदन की आवाज़ में साग़र निज़ामी की एक और ग़ज़ल
हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
तुम ने बना दिया है मोहब्बत में क्या मुझे
हर मंज़िल-ए-हयात से गुम कर गया मुझे
मुड़ मुड़ के राह में वो तेरा देखना मुझे
कैसे ख़ुशी ने मौज को कश्ती बना दिया
होश-ए-ख़ुदा अब न ग़म-ए-नाख़ुदा मुझे
साक़ी बने हुए हैं वो साग़र शब-ए-विसाल
इस वक़्त कोई मेरी क़सम देखता मुझे
हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
तुम ने बना दिया है मोहब्बत में क्या मुझे
हर मंज़िल-ए-हयात से गुम कर गया मुझे
मुड़ मुड़ के राह में वो तेरा देखना मुझे
कैसे ख़ुशी ने मौज को कश्ती बना दिया
होश-ए-ख़ुदा अब न ग़म-ए-नाख़ुदा मुझे
साक़ी बने हुए हैं वो साग़र शब-ए-विसाल
इस वक़्त कोई मेरी क़सम देखता मुझे
4 comments:
subhu ko sunenge ! mast layout hai blog ka ye to!
suni sahab ! vaaaaaaah!
कैसे खुदी ने मौज को नहीं. कैफ़-ए- खुदी ने मौज को.
कैफ़े ख़ुदी ने मौज को कश्ती बना दिया
होशे-ख़ुदा है अब न ग़मे-नाख़ुदा मुझे
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