Monday, July 14, 2008

लो दिल की बात आप भी हम से छुपा गए

रेशमा आपा का 'दर्द' अभी जारी है. सुनिये उसी संग्रह से एक और ग़ज़ल. संभवतः ग़ज़ल सुरेन्दर मलिक 'गुमनाम' की है, जिनकी बहुत सारी ग़ज़लें ग़ुलाम अली ने अपने 'हसीन लम्हे' सीरीज़ में गाई थीं. यह सीरीज़ और रेशमा का संग्रह 'दर्द' दोनों क़रीब - क़रीब एक साथ वेस्टन ने निकाले थे.



लो दिल की बात आप भी हम से छुपा गए
लगता है आप ग़ैरों की बातों में आ गए

मेरी तो इल्तिजा थी, रक़ीबों से मत मिलो
उनके बिछाए जाल में लो तुम भी आ गए

ये इश्क़ का सफ़र है, मंज़िल है इस की मौत
घायल जो करने आए थे, वही चोट खा गए

रोना था मुझ को उन के दामन में ज़ार-ज़ार
पलकों के मेरे अश्क़ उन्हीं को रुला गए

'गुमनाम' भूलता नहीं वो तेरी रहगुज़र
जिस रहगुज़र पे प्यार की शम्मः बुझा गए

पिछली पोस्ट का लिंक:

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियां

2 comments:

Udan Tashtari said...

Vaah!! Aanand aa gaya.

"अर्श" said...

reshama begam ki gai behatarin ghazalon mese ek jo muje khas taur se pasand hai mene ye ghazal khub gai hai,,,,,,........

aapko iske liye dhero shubhkamanayen.....


regards
Arsh