Friday, July 11, 2008

फ़कीरानः आए सदा कर चले, मियां ख़ुश रहो हम दुआ कर चले

कई दिनों बाद आज इस ग़ज़ल को सुनते हुए मुझे बारहा ऐसा अहसास होता रहा कि यह किसी बीती सहस्त्राब्दी की फ़िल्म का हिस्सा है. मैं लगातार अपने आप से पूछता रहा कि क्या फ़क़त छब्बीस साल पहले इस दर्ज़े की कालजयी कृतियों को किसी फ़िल्म में बढ़िया पॉपुलर धुनों में बांधने वाले संगीतकार इसी धरती पर हुआ करते थे? उनमें से कोई बचे भी हैं या नहीं? या सब कुछ मार्केट के नाम पर औने-पौने बेच-लूट दिया गया?

१९८२ में सागर सरहदी की बहुचर्चित फ़िल्म 'बाज़ार' से पेश है बाबा मीर तक़ी मीर की विख्यात ग़ज़ल. इस फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, फ़ारुख़ शेख़ और सुप्रिया पाठक की मुख्य भूमिकाएं थीं. खैयाम साहब का संगीत है और लता मंगेशकर की आवाज़.




दिखाई दिये यूं कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीं सजदा करते ही करते गई
हक़-ए-बन्दगी हम अदा कर चले

परस्तिश की यां तक कि अय बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले

बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
सो यां से लहू में नहा कर चले

1 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बेहतरीन.
आपकी भूमिका और
कथ्य भी प्रभावशाली हैं.
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बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन