Thursday, July 3, 2008

गै़र के सामने यूं होते हैं शिकवे मुझसे


डॉक्टर रोशन भारती साहब की एक ग़ज़ल आप सुख़नसाज़ में सुन चुके हैं. टाइम्स म्यूज़िक द्वारा जारी उनके अल्बम 'दाग़' से प्रस्तुत कर रहा हूं एक और ग़ज़ल



आप जिन जिन को हदफ़ तीर-ए-नज़र करते हैं
रात दिन हाय जिगर हाय जिगर करते हैं

गै़र के सामने यूं होते हैं शिकवे मुझसे
देखते हैं वो उधर बात इधर करते हैं

दर-ओ-दीवार से भी रश्क मुझे आता है
गौर से जब किसी जानिब वो नज़र करते हैं

एक तो नश्शा-ए-मय उस पे नशीली आंखें
होश उड़ते हैं जिधर को वो नज़र करते हैं


रोशन जी के बारे में जानने हेतु उनकी वैबसाइट पर जाया जा सकता है. आज बड़ौदा में उनकी एक कन्सर्ट भी है. उनकी पिछली ग़ज़ल का लिंक ये रहा:

दिल गया, तुमने लिया हम क्या करें

7 comments:

पारुल "पुखराज" said...

badi sadgi hai roshan ji ki avaz me...vahi lubhaati hai...DIL GAYA ...to kitni baar suni gayi..khabar nahi...shukriyaa

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर है यह

डॉ .अनुराग said...

subhan aalah......

सागर नाहर said...

कितनी सादगी भरी आवाज और संगीत .. वाह। सुभानाअल्लाह।
कितनी बार सुन लिया पर मन नहीं भरा.. क्या आप मुझे मेल में भेजेंगे इस नज़्म को?
sagarnahar et gmail.com

sanjay patel said...

सागर भाई...रोशन भाई की आवाज़ की सादगी ही उनकी गायकी की ताक़त है.
और सबसे बड़ी बात क्लासिकल म्युज़िक
को सलीक़े से बरतने वाला ये युवा गायक
शायरी की भी गहरी समझ रखता है.बिना
किसी और से प्रभावित हुए जब जब भी
ख़ालिस सुर साधा जाएगा....यश पाएगा,
दिल को छुएगा...

और हाँ सागर भाई किसी ग़ज़ल को
स्थापित करने में कम्पोज़िशन का
कमाल भी नहीं नकारा जा सकता.
बीच बीच में सारंगी और मेंडोलिन
भी रोशन भाई को प्यारी रोशनी
बख्शते से चल रहे हैं न ?

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, आभार सुनवाने का.

seema gupta said...

"bhut khub, acchee lgee"

Regards