कुछ दिन पहले मैंने मेहदी हसन साहब के एक अलबम 'दरबार-ए-ग़ज़ल' का ज़िक्र किया था. आज उसी से सुनिए नासिर काज़मी की एक ग़ज़ल:
ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मेरे बाद
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद
कौन घूंघट को उठाएगा सितमगर कह के
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद
हाथ उठते हुए उनके न देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद
फिर ज़माने मुहब्बत की न पुरसिश होगी
रोएगी सिसकियां ले-ले के वफ़ा मेरे बाद
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूं
उसका क्या जानिए, क्या हाल हुआ मेरे बाद
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
7 comments:
अच्छा लिखा है।
shukriya ise sunaane ke liye....
bhut badhiya gajal. aabhar sunane ke liye.
अंतरे में सुर की परवाज़ देखिये . अमूमन ख़ाँ साहब एक बहुत ही सॉफ़्ट अंदाज़ के लिये जाने जाते हैं लेकिन यहाँ ग़ज़ल की सिचुएशन एक विकलता मांगती है...हाथ उठते हुए उनके न कोई देखेगा में रिपीट मिसरे के बीच छोटी सी तान कैसी ख़ूबसूरत बन पड़ी है.अशोक भाई ये ख़ज़ाना सार्वजनिक कर के सवाब लूट रहे हैं आप.
बहुत जबरदस्त!! आभार सुनवाने का.
आह ! क्या शेर हैं साहब. वाह भाई, मस्त कर दिया.
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