Monday, July 28, 2008

और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद

कुछ दिन पहले मैंने मेहदी हसन साहब के एक अलबम 'दरबार-ए-ग़ज़ल' का ज़िक्र किया था. आज उसी से सुनिए नासिर काज़मी की एक ग़ज़ल:



ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मेरे बाद
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद

कौन घूंघट को उठाएगा सितमगर कह के
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद

हाथ उठते हुए उनके न देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद

फिर ज़माने मुहब्बत की न पुरसिश होगी
रोएगी सिसकियां ले-ले के वफ़ा मेरे बाद

वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूं
उसका क्या जानिए, क्या हाल हुआ मेरे बाद

7 comments:

शोभा said...

अच्छा लिखा है।

डॉ .अनुराग said...

shukriya ise sunaane ke liye....

Advocate Rashmi saurana said...

bhut badhiya gajal. aabhar sunane ke liye.

sanjay patel said...
This comment has been removed by the author.
sanjay patel said...

अंतरे में सुर की परवाज़ देखिये . अमूमन ख़ाँ साहब एक बहुत ही सॉफ़्ट अंदाज़ के लिये जाने जाते हैं लेकिन यहाँ ग़ज़ल की सिचुएशन एक विकलता मांगती है...हाथ उठते हुए उनके न कोई देखेगा में रिपीट मिसरे के बीच छोटी सी तान कैसी ख़ूबसूरत बन पड़ी है.अशोक भाई ये ख़ज़ाना सार्वजनिक कर के सवाब लूट रहे हैं आप.

Udan Tashtari said...

बहुत जबरदस्त!! आभार सुनवाने का.

अमिताभ मीत said...

आह ! क्या शेर हैं साहब. वाह भाई, मस्त कर दिया.