जनाब अली सिकन्दर उर्फ़ जिगर मुरादाबादी साहब की अविस्मरणीय ग़ज़ल को गा रही हैं बेग़म अख़्तर:
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन
रहमत होगी तालिब-ए-इसियाँ
रश्क करेगी पाकी-ए-दामन
काँटों का भी हक़ है कुछ आख़िर
कौन छुड़ाए अपना दामन
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
3 comments:
Aabhar..behtarin prastuti.
bahut sundar ghazal...dhanyvaad
अद्भुत!
बहुत ही शानदार...
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