जगजीत सिंह और लता मंगेशकर ने सन १९९१ में 'सजदा' अलबम जारी किया था. संभवतः ग़ुलाम अली-आशा भोंसले के अलबम 'मेराज-ए-ग़ज़ल' और मेहदी हसन - शोभा गुर्टू के 'तर्ज़' जैसे संग्रहों के बाद आने वाला इस तरह की जुगलबन्दी वाला यह सबसे बेहतरीन कलेक्शन था.
आज प्रस्तुत की जा रही ग़ज़ल है १९३२ में नागपुर में जन्मे शायर शाहिद कबीर साहब की. 'चारों ओर' (१९६८), 'मिट्टी का मकान' (१९७९) और 'पहचान' (२०००) उनके प्रकाशित संग्रहों के नाम हैं.
बहुत सादा धुन में बहुत इत्मीनान से गाई गई है ये कम्पोज़ीशन. आनन्द उठाइये:
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है, मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है, मेरा भी
अपने ग़म को गीत बना कर गा लेना
राग पुराना तेरा भी है मेरा भी
मैं तुझको और तू मुझको समझाएं क्या
दिल दीवाना तेरा भी है मेरा भी
शहर में गलियों गलियों जिसका चरचा है
वो अफ़साना तेरा भी है मेरा भी
मैख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
आना जाना तेरा भी है मेरा भी
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
2 comments:
बेहतरीन गजल है यह जगजीत जी और लता जी की
lajaavab ghazal
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