कोई बीसेक साल पहले ग़ुलाम अली और आशा भोंसले ने मिल जुल कर मेराज़-ए-ग़ज़ल नाम से एक बेहतरीन अल्बम जारी किया था. यह आज भी मेरे सर्वकालीन प्रियतम संग्रहों में है. उसी से सुनिए यह कम्पोज़ीशन:
फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी, तुम याद आए
फ़िर कंजें बोलीं घास के हर समुन्दर में
रुत आई पीले फूलों की, तुम याद आए
फिर कागा बोला घर के सूने आंगन में
फिर अमृत रस की बूंद पड़ी, तुम याद आए
(आभार: विनय)
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
-
मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
3 comments:
अशोक भाई, फ़िलहाल दफ्तर में हूँ, सुन नहीं सकता, लेकिन मेराज-ए-ग़ज़ल मेरी भी पसंदीदा albums में से एक है. इसी album की एक और कमाल की ग़ज़ल मैं भी पोस्ट करने की सोच रहा था. बहुत उम्दा प्रस्तुति.
Evergreen track!Thanks.
कृपया कवि का नाम भी बतायें |
बहुत पसँद आया गीत अशोक जी ..
बेहतरीन ...मौज मेँ थिरकता हुआ !
- लावण्या
Post a Comment