कुछ दिन पहले यहां आपने मेहदी हसन साहब की आवाज़ में एक अल्बम 'तर्ज़' से एक ग़ज़ल सुनी थी. गणेश बिहारी 'तर्ज़' की ग़ज़लों को ललित सेन ने संगीतबद्ध किया था. उसी से सुनिये इस दफ़ा शोभा गुर्टू को. कमेन्ट्री है नौशाद साहब की:
इक ज़रा दिल के क़रीब आओ तो कुछ चैन पड़े
जाम को जाम से टकराओ तो कुछ चैन पड़े
जी उलझता है बहुत नग़्म-ए-रंगीं सुनकर
गीत एक दर्द भरा गाओ तो कुछ चैन पड़े
बैठे-बैठे तो हर इक मौज से दिल दहलेगा
बढ़ के तूफ़ानों से टकराओ तो कुछ चैन पड़े
दाग़ के शेर जवानी में भले लगते हैं
मीर की कोई ग़ज़ल गाओ तो कुछ चैन पड़े
याद-ए-अय्याम-ए-गुज़िस्ता से इजाज़त लेकर
'तर्ज़' कुछ देर को सो जाओ तो कुछ चैन पड़े
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
4 comments:
छा गये...दिन बना दिया. बहुत खूब!!
मधुर संगीत से दिन की शुरूवाद कराने के लिए धन्यवाद
हाय-हाय!
मेरी कैसेट 'तर्ज'कोई रसिआ मार ले गया था.आज ये सुन के 'कुश' चैन पड़ा.सच्ची कै रिया हूं बाबू जी . गुवाहाटी के फ़ैंसी बाजार से मोल ली थी,खरे पीसे देकर.इस अलबम में और कई जानदार चीजें हैं.एक और परोसो साब जी.
kya baat hai!!!wah
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