भारत के आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह 'ज़फ़र' की यह ग़ज़ल मेहदी हसन साहब की चुनिन्दा ग़ज़लों के हर प्रीमियम संस्करण की शान बनती रही है. आलोचकगण कई बार इसमें राजनैतिक नैराश्य और आसन्न पराजय से त्रस्त ज़फ़र की मनःस्थिति तक पहुंचने का प्रयास करते रहे हैं.
यह अकारण नहीं था क्योंकि कुछ ही सालों बाद अंग्रेज़ों ने ज़फ़र को वतनबदर करते हुए रंगून की जेल में भेज दिया. कूचः-ए-यार में दो गज़ ज़मीं न मिल सकने को अभिशप्त रहे इस बादशाह-शायर की कविता को उसकी समग्रता में समझने की बेहद ईमानदार कोशिश आप को मेहदी हसन साहब की आवाज़ में सुनने को मिलती है. इस बात को सुख़नसाज़ पर बार-बार अंडरलाइन किया गया है कि इस उस्ताद गायक के भीतर कविता और शब्दों के प्रति जो सम्मान है, वह अभूतपूर्व तो है ही, साहित्य-संगीत के पाठकों के लिए बहुमूल्य भी है.
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
10 comments:
उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
"kitnee khubsurt lines hain, ek hqueeqt"
Regards
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
bahut sunder
साधुवाद, शुक्रिया, शानदार, बढि़या, आभार आदि आदि कहने के बजाय मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि भई वाह, आपने तबियत खुश कर दी..
is wakt yahee alam hai-
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी।
वाह बहुत शुक्रिया । यह ग़ज़ल मुझे बहुत ही पसंद है।
bahut sukun se sunte hai ...shukriya
किन्ही कारणों से हो, फ़िर भी आपके ब्लॊग से दूर रहनें की सज़ा यही होती है, कि आप महेरूम हो जाने है उस नायाब जदूगरी से.शुक्रिया इस नेट का की आप बाद में भी लुत्फ़ ले सकते है.
यह गीत अनमोल है,बेक़रारी की इंतेहां है.
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल.... जी कोई इसका माने बता सकता है
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल.... जी कोई इसका माने बता दें sir
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