उस्ताद मेहदी हसन ख़ां साहब की एक बहुत आलीशान, बहुत अलहदा सी ग़ज़ल प्रस्तुत है:
तुझको आते ही नहीं छुपने के अन्दाज़ अभी
मेरे सीने में है लरज़ां तेरी आवाज़ अभी
उसने देखा भी नहीं दर्द का आग़ाज़ अभी
इश्क़ को अपनी तमन्ना पे है नाज़ अभी
तुझको मंज़िल पे पहुंचने का है दावा हमदम
मुझको अन्जाम नज़र आता है आग़ाज़ अभी
किस क़दर गो़श बर आवाज़ है ख़ामोशि-ए-शब
कोई ला ला के है फ़रियाद का दरबाज़ अभी
मेरे चेहरे की हंसी, रंग शिकस्ता मेरा
तेरे अश्कों में तबस्सुम का है अन्दाज़ अभी
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
11 comments:
बेहद बेहद सुरीला
जितनी बार सुना जाये कम है
सुन्दर!
आभार इतनी सुरीली ग़ज़ल सुनवाने के लिए...वाह..
नीरज
umdaa gazal umdaa gayaki aur umdaa pasand
"enjoyed listing it, thanks for sharing"
Regards
वाह नायाब
तुझको आते ही नहीं छुपने के अन्दाज़ अभी
मेरे सीने में है लरज़ां तेरी आवाज़ अभी
उसने देखा भी नहीं दर्द का आग़ाज़ अभी
इश्क़ को अपनी तमन्ना पे है नाज़ अभी
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है...
behatreen ghazal....
अशोक जी ! मेहदीहसन के अपने परंपरागत अंदाज़ से हटकर गाई गई इस ग़ज़ल को सुनवाने के लिए आभार !
बेहतरीन गज़ल, और तबले का भी बेहतरीन अंदाज़ और लटके झटके..आज पच्चीस साल बाद फ़िर सुनी.
अब इस खा़मोशि-ए-शब का पूरा लुत्फ़ उठाते है.
क्या इस ग़ज़ल के शायर का नाम कोई बता सकते हैं?
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