"जिगर" मुरादाबादी की एक ग़ज़ल .......
अभी अभी कहीं से वापस घर आया और ये सुना .... लगा कि पोस्ट करने में कोई बुराई नहीं ... ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद है ............ और आवाज़ के बारे में कुछ कहना ज़रा अजीब सा लगता है मुझे ... जो संगीत के जानकार हैं वो ही कहा करें ......... मैं तो बस सुन के जीता हूँ ........
बस एक बात कहनी है ... ग़ज़ल का एक शेर आख़िर में पेश है जो इस version में नहीं है ..
"जिगर" मुरादाबादी
बेग़म अख्तर
दुनियाँ के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मुहब्बत के सिवा याद
मैं शिक़वा ब लब था मुझे ये भी न रहा याद
शायद कि मेरे भूलने वाले ने किया याद
जब कोई हसीं होता है सरगर्म-ए-नवाज़िश
उस वक्त वो कुछ और भी आते हैं सिवा याद
मुद्दत हुई एक हादसा-ए-इश्क़ को लेकिन
अब तक है तेरे दिल के धड़कने की सदा याद
मैं तर्क़-ए-रह-ओ-रस्म-ए-जुनूँ कर ही चुका था
क्यों आ गई ऐसे में तेरी लग्जिश-ए-पा याद
और ये शेर :
क्या लुत्फ़ कि मैं अपना पता आप बताऊँ
कीजे कोई भूली हुई ख़ास अपनी अदा याद
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
4 comments:
दुनियाँ के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मुहब्बत के सिवा याद
sunna achcha laga
sakun mila
मीत जी,एक अच्छी गज़ल सुनवाने के लिए आभार।
मीत भाई, क्या बात है? आप भी बेग़म अख़्तर की तरह छाए हुए हो हर जगह।
बहुत आभार!!
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