आज पेश है एक ग़ज़ल ग़ालिब की..... आवाज़ "ग़ज़लों की मलिका' बेगम अख्तर की :
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना
बन गया रकीब आख़िर था जो राजदां अपना
मय वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ए-गै़र में यारब !
आज ही हुआ मंज़ूर, उन को इम्तेहाँ अपना
मंज़र एक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श से उधर होता, काश कि मकाँ अपना
हम कहाँ के दाना थे, किस हुनर में यकता थे
बेसबब हुआ 'ग़ालिब' दुश्मन आसमाँ अपना
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
6 comments:
ashok bhai hindi script padne mai nhi aa raha hai, lekin yah problm sirf I.E mai aa rahi hai jabki mozila pr theek hai, fir bhi yadi sambhaw ho to I P ke liye bhi durast kar den.
ashok bhai hindi script padne mai nhi aa raha hai, lekin yah problm sirf I.E mai aa rahi hai jabki mozila pr theek hai, fir bhi yadi sambhaw ho to I P ke liye bhi durast kar den.
बहुद खूब मीत जी, धन्यवाद!
Vijay Gaur Ji,
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सुबह-सुबह आनंद!
मय वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ए-गै़र में यारब !
आज ही हुआ मंज़ूर, उन को इम्तेहाँ अपना
मंज़र एक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श से उधर होता, काश कि मकाँ अपना
शानदार पेशकश है...
बहुत ही मज्जेदार मीत भाई।
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