अब के साल पूनम में, जब तू आएगी मिलने
हम ने सोच रखा है रात यूं गुज़ारेंगे
धड़कनें बिछा देंगे शोख़ तेरे क़दमों पे
हम निगाहों से तेरी आरती उतारेंगे
तू कि आज क़ातिल है, फिर भी राहत-ए-दिल है
ज़हर की नदी है तू, फिर भी क़ीमती है तू
पस्त हौसले वाले तेरा साथ क्या देंगे
ज़िंदगी इधर आ जा, हम तुझे गुज़ारेंगे
आहनी कलेजे को, ज़ख़्म की ज़रूरत है
उंगलियों से जो टपके, उस लहू की हाज़त है
आप ज़ुल्फ़-ए-जानां के, ख़म संवारिये साहब
ज़िंदगी की ज़ुल्फ़ों को आप क्या संवारेंगे
हम तो वक़्त हैं पल हैं, तेज़ गाम घड़ियां हैं
बेकरार लमहे हैं, बेथकान सदियां हैं
कोई साथ में अपने, आए या नहीं आए
जो मिलेगा रस्ते में हम उसे पुकारेंगे
हम ने सोच रखा है रात यूं गुज़ारेंगे
धड़कनें बिछा देंगे शोख़ तेरे क़दमों पे
हम निगाहों से तेरी आरती उतारेंगे
तू कि आज क़ातिल है, फिर भी राहत-ए-दिल है
ज़हर की नदी है तू, फिर भी क़ीमती है तू
पस्त हौसले वाले तेरा साथ क्या देंगे
ज़िंदगी इधर आ जा, हम तुझे गुज़ारेंगे
आहनी कलेजे को, ज़ख़्म की ज़रूरत है
उंगलियों से जो टपके, उस लहू की हाज़त है
आप ज़ुल्फ़-ए-जानां के, ख़म संवारिये साहब
ज़िंदगी की ज़ुल्फ़ों को आप क्या संवारेंगे
हम तो वक़्त हैं पल हैं, तेज़ गाम घड़ियां हैं
बेकरार लमहे हैं, बेथकान सदियां हैं
कोई साथ में अपने, आए या नहीं आए
जो मिलेगा रस्ते में हम उसे पुकारेंगे
3 comments:
अब के साल पूनम में, जब तू आएगी मिलने……….
मुम्बई के बुज़ुर्ग शाइर ज़फ़र गोरखपुरी ने बताया कि उन्होंने 42 साल पहले ये ग़ज़ल कही थी। मर्द की ओर से औरत का इंतज़ार बयान करने वाली इस ग़ज़ल को मेंहदी हसन और साबरी ब्रदर्स से लेकर दुनिया के अनेक सिंगर अपनी आवाज़ में अपने अंदाज़ से पेश कर चुके हैं। मुझे इस सिलसिले में पाकिस्तनी गायिका नाइला मुग़ल का अंदाज़े-बयां सबसे जुदा और असरदार लगा। लीजिए आप भी इसका लुत्फ़ उठाइए-
Ab Kay Saal Poonam Mein. by " Naila Mughal ".
http://www.youtube.com/watch?v=cJkKSfIiqeE
अब के साल पूनम में, जब तू आएगी मिलने
हम ने सोच रखा है रात यूं गुज़ारेंगे
धड़कनें बिछा देंगे शोख़ तेरे क़दमों पे
हम निगाहों से तेरी आरती उतारेंगे
तू कि आज क़ातिल है, फिर भी राहत-ए-दिल है
ज़हर की नदी है तू, फिर भी क़ीमती है तू
पस्त हौसले वाले तेरा साथ क्या देंगे
ज़िंदगी इधर आ जा, हम तुझे गुज़ारेंगे
आहनी कलेजे को, ज़ख़्म की ज़रूरत है
उंगलियों से जो टपके, उस लहू की हाज़त है
आप ज़ुल्फ़-ए-जानां के, ख़म संवारिये साहब
ज़िंदगी की ज़ुल्फ़ों को आप क्या संवारेंगे
हम तो वक़्त हैं पल हैं, तेज़ गाम घड़ियां हैं
बेकरार लमहे हैं, बेथकान सदियां हैं
कोई साथ में अपने, आए या नहीं आए
जो मिलेगा रस्ते में हम उसे पुकारेंगे
………..(शाइर : ज़फ़र गोरखपुरी)……….
सर इस ग़ज़ल को मेहदी हसन साहब नही गाया है।
सर इस ग़ज़ल को मेहदी हसन साहब ने नही गाया है।
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