यहाँ एक महफ़िल में उस्ताद इस गीत को किस क्लासिकल अंदाज़ में पेश कर रहे हैं, गौर फरमाइए –
एक अजनबी जो गैर था और ग़मगुसार था
वो साथ थ तो दुनिया के ग़म दिल से दूर थे
खुशियों को साथ ले के न जाने कहाँ गया
दुनिया समझ रही है जुदा मुझ से हो गया
नज़रों से दूर जा के भी दिल से न जा सका
अब ज़िंदगी की कोई तमन्ना नहीं मुझे
रोशन उसी के दम से था बुझता हुआ दिया
1 comments:
waah ..
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