'तर्ज़' से अगली पेशकश. गणेश बिहारी 'तर्ज़' की ग़ज़ल को स्वर दे रही हैं शोभा गुर्टू -
मुझे दे के मय मेरे साक़िया मेरी तिश्नगी को हवा न दे
मेरी प्यास पर भी तो कर नज़र मुझे मैकशी की सज़ा न दे
मेरा साथ अय मेरे हमसफ़र नहीं चाहता है तो जाम दे
मगर इस तरह सर-ए-रहगुज़र मुझे हर कदम पे सदा न दे
मेरा ग़म न कर मेरे चारागर तेरी चाराजोई बजा मगर
मेरा दर्द है मेरी ज़िन्दगी मुझे दर्द-ए-दिल की दवा न दे
मैं वहां हूँ अब मेरे नासेहा की जहाँ खुशी का गुज़र नहीं
मेरा ग़म हदों से गुज़र गया मुझे अब खुशी की दुआ न दे
वो गिराएं शौक़ से बिजलियाँ ये सितम करम है सितम नहीं
के वो 'तर्ज़' बर्क-ए-ज़फ़ा नहीं जो चमक ने नूर-ए-वफ़ा न दे
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