उस्ताद गा रहे हैं क़तील शिफ़ाई की ग़ज़ल –
खाली पड़ा था दिल का मकान
आप के बग़ैर
बेरंग सा था सारा जहां आपके बग़ैर
फूलों में चांदनी में धनक में घटाओं में
पहले ये दिलकशी थी कहाँ आपके बग़ैर
साहिल को इंतज़ार है मुद्दत से आपका
रुक सी गयी है मौज-ए-रवां आपके बग़ैर
हर सिम्त बेरुख़ी की है चादर तनी हुई
किस पर करें वफ़ा का गुमां आपके बग़ैर
ख़ामोशियों को जैसे ज़ुबां मिल गयी ‘क़तील’
महफ़िल में ज़िन्दगी थी कहाँ आपके बग़ैर
बेरंग सा था सारा जहां आपके बग़ैर
फूलों में चांदनी में धनक में घटाओं में
पहले ये दिलकशी थी कहाँ आपके बग़ैर
साहिल को इंतज़ार है मुद्दत से आपका
रुक सी गयी है मौज-ए-रवां आपके बग़ैर
हर सिम्त बेरुख़ी की है चादर तनी हुई
किस पर करें वफ़ा का गुमां आपके बग़ैर
ख़ामोशियों को जैसे ज़ुबां मिल गयी ‘क़तील’
महफ़िल में ज़िन्दगी थी कहाँ आपके बग़ैर
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