Wednesday, September 12, 2012

किस पर करें वफ़ा का गुमां आपके बग़ैर


उस्ताद गा रहे हैं क़तील शिफ़ाई की ग़ज़ल  




खाली पड़ा था दिल का मकान आप के बग़ैर 
बेरंग सा था सारा जहां आपके बग़ैर 

फूलों में चांदनी में धनक में घटाओं में 
पहले ये दिलकशी थी कहाँ आपके बग़ैर 

साहिल को इंतज़ार है मुद्दत से आपका 
रुक सी गयी है मौज-ए-रवां आपके बग़ैर 

हर सिम्त बेरुख़ी की है चादर तनी हुई 
किस पर करें वफ़ा का गुमां आपके बग़ैर 

ख़ामोशियों को जैसे ज़ुबां मिल गयी क़तील 
महफ़िल में ज़िन्दगी थी कहाँ आपके बग़ैर 

0 comments: