अल्बम 'मेराज-ए-ग़ज़ल' से प्रस्तुत है एक और शानदार ग़ज़ल आशा भोंसले की आवाज़ में:
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-नेहां तक आ गए
हम तो दिल तक चाहते थे, तुम तो जां तक आ गए
ज़ुल्फ़ में ख़ुशबू न थी, या रंग आरिज़ में न था
आप किस की जुस्तजू में गुलसितां तक आ गए
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबां का शऊर आ जाएगा
तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए
उनकी पलकों पे सितारे, अपने होटों पे हंसी
क़िस्सा-ए-ग़म कहते-कहते हम यहां तक आ गए
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
-
मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
3 comments:
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबां का शऊर आ जाएगा
तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए
बहुत ख़ूब। शुक्रिया एक और बेहतरीन ग़ज़ल सुनवाने का।
बहुत खूबसूरत! शुक्रिया!
बेहतरीन ग़ज़ल सुनवाने का शुक्रिया!
Post a Comment