Thursday, August 14, 2008

दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है



उस्ताद मेहदी हसन का अलबम 'कहना उसे' अब एक अविस्मरणीय क्लासिक बन चुका है. फ़रहत शहज़ाद साहब की इन दिलफ़रेब ग़ज़लों को जब मेहदी हसन साहब ने गाया था, उनका वतन पाकिस्तान ज़िया उल हक़ के अत्याचारों से त्रस्त था. मैंने पहले भी बताया था कि इस संग्रह की सारी ग़ज़लें एक बिल्कुल दूसरे ही मूड की रचनाएं हैं - ऊपर से बेहद रूमानी और असल में बेहद पॉलिटिकल. इस संग्रह को प्रस्तुत करने में दोनों ने अपनी जान का जोख़िम उठाया था. हमें उस्ताद की हिम्मत पर भी नाज़ है.

उसी संग्रह से सुनिये एक और ग़ज़ल:




क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है

चुपके-चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है

रंग-बिरंगी महफ़िल में तुम क्यों इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो, क्या खोया क्या पाया है

शेर कहां हैं ख़ून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है

अब शहज़ाद ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है

(फ़ोटो में व्हीलचेयर पर बैठे हैं लम्बे समय से अस्वस्थ ख़ां साहेब. उनके लिए हमारी लगातार दुआएं हैं और उनकी अथक साधना के प्रति सतत कृतज्ञता का बोध भी)

6 comments:

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

सच कहूं तो मेहदी हसन साहब ने ही मुझे गजलों की तरफ मोड़ा। उनकी आवाज का जादू आज भी हम सब के सर पर चढ़कर बोलता है.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

एक प्राब्लम है, नेट स्लो होने की वजह से इसमें डिस्टर्बेंस आती है, क्या पोडकास्ट से गजल को लैपटाप पर सेव कर सकते हैं, यदि ऐसा कोई आप्शन किसी को मालूम हो तो मुझे बताएं. ताकि मैं भी साफ-साफ आवाज में ये गजल सुन सकूं।

Udan Tashtari said...

वाह! आनन्द आ गया.आभार इस प्रस्तुति के लिए.

पारुल "पुखराज" said...

bahut khuub---bahut shukriyaa..

दिलीप कवठेकर said...

मेहदी साह्ब का चेहरा भी बडा कुम्हलाया सा है.

हम जब अपनी चाहत को परखने बैठते है तो इस खयाल से की खां साहब की तबियत नासाज़ है, तनहा तनहा रोने का जी करता है, और मालिक से ज़िद करने का मन करता है. लगता है वो इतना बेदर्द नही.

वैसे क्या वज़न है गज़ल में. मतले और मिसरे के आखिरी जगह पर जो हरकत दी है , बस वे ही गा सकते है.Lesser mortals like us can not even sing it closer.

शोभा said...

अब शहज़ाद ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है सही सवाल उठाए हैं । किसी के पास उत्तर नहीं हैं इनके। सुन्दर अभिव्यक्ति । स्वाधीनता दिवस की बधाई