पाकिस्तानी शायर इब्ने इंशा (१९२७-१९७८) मेरे सबसे पसन्दीदा कवि-लेखकों में हैं. इंशा साहब का असली नाम शेर मोहम्मद ख़ां था. उनकी ज़्यादातर पद्य रचनाओं से एक फक्कड़मिजाज़ मस्तमौला और अनौपचारिक इन्सान की तस्वीर उभरती है जो मीर तक़ी मीर और नज़ीर अकबराबादी की रिवायत को आगे ले जाने का हौसला और माद्दा रखता है. जैसे उनका एक शेर देखिये:
इंशा ने फिर इश्क़ किया, इंशा साहब दीवाने
अपने भी वो दोस्त हुए, हम भी चलेंगे समझाने
उनका बेहतरीन व्यंग्यात्मक गद्य उनके व्यक्तित्व के एक बेहद सचेत आयाम से हमें रू-ब-रू कराता है. इरफ़ान के ब्लॉग 'टूटी हुई बिखरी हुई' पर आप उनकी चन्द ऐसी ही रचनाओं का पाठ सुन सकते हैं. फ़िलहाल आज सुनिये उनकी एक नज़्म ग़ुलाम अली की आवाज़ में. उनकी एक और ग़ज़ल 'कल चौदहवीं की रात थी' को ख़ुद ग़ुलाम अली और जगजीत सिंह काफ़ी पॉपुलर बना चुके हैं.
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम इंशा जी का नाम न लो, क्या इंशा जी सौदाई हैं?
हैं लाखों रोग ज़माने में, क्यों इश्क़ है रुसवा बेचारा
हैं और भी वजहें वहशत की, इन्सान को रखतीं दुखियारा
हाँ बेकल बेकल रहत है, हो प्रीत में जिसने दिल हारा
पर शाम से लेके सुबहो तलक, यूँ कौन फिरे है आवारा
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम इंशा जी का नाम न लो, क्या इंशा जी सौदाई हैं?
गर इश्क़ किया है तब क्या है, क्यूँ शाद नहीं आबाद नहीं
जो जान लिये बिन टल ना सके, ये ऐसी भी उफ़ताद नहीं
ये बात तो तुम भी मानोगे, वो क़ैस नहीं फ़रहाद नहीं
क्या हिज्र का दारू मुश्किल है, क्या वस्ल के नुस्ख़े याद नहीं
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम इंशा जी का नाम न लो, क्या इंशा जी सौदाई हैं
जो हमसे कहो हम करते हैं, क्या इन्शा को समझना है
उस लड़की से भी कह लेंगे, गो अब कुछ और ज़मना है
या छोड़ें या तकमील करें, ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख धंधा है, ये कैसा ताना बाना है
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम इंशा जी का नाम न लो, क्या इंशा जी सौदाई हैं
(सौदाई: पागल, वहशत: घबराहट, शाद: खु़श, उफ़ताद: अचानक आई हुई कोई विपत्ति, दारू: दवा, तकमील करना: अंजाम तक पहुंचाना )
नोट: इस रचना में एक और शानदार स्टैंज़ा है जो पता नहीं क्यों ग़ुलाम अली ने छोड़ दिया. मुझे तो वह कुछ ज़्यादा ही अच्छा लगता है. दुर्भाग्यवश इस स्टैंज़ा का बहुत सारे लोगों को पता ही नहीं. लीजिये प्रस्तुत है:
ये बात अजीब सुनाते हो, वो दुनिया से बेआस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया, इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
वो इल्म में अफ़लातून बने, वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं, वो बी.ए. एम.ए. पास हुए
और ये रहा एक और बेहद ज़रूरी स्टैंज़ा जो बजरिये मीत (उर्फ़ अमिताभ भाई) यहां पहुंचाया जा रहा है:
वो लड़की अच्छी लड़की है, तुम नाम न लो हम जान गए
वो जिस के लंबे गेसू हैं, पहचान गए पहचान गए
हाँ साथ हमारे इंशा भी उस घर में थे मेहमान गए
पर उस से तो कुछ बात न की, अनजान रहे अनजान गए
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
7 comments:
सलाम साब!
अरे भाई मस्त !!! एकदम २५ साल पीछे पहुँचा दिया ..... तब रिकॉर्ड प्लेयर हुआ करता था ... उसी पे सुना करता था ये रिकॉर्ड. बहुत खूब. और चलते चलते : इस के बारे में क्या ख़याल है ?
वो लड़की अच्छी लड़की है, तुम नाम न लो हम जान गए
वो जिस के लंबे गेसू हैं, पहचान गए पहचान गए
हाँ साथ हमारे इंशा भी उस घर में थे मेहमान गए
पर उस से तो कुछ बात न की, अनजान रहे अनजान गए ....
अमिताभ भाई
हद है. मुझ से कैसे छूटी होंगी ये सबसे ज़रूरी पंक्तियां?. लगाता हूं तुरन्त. लेकिन मौज ला दी आपने. इनके बग़ैर यह नज़्म अधूरी रह जानी थी.
एक लाख शुक्रिया.
गजब, बेहतरीन!! आभार प्रस्तुत करने का.
बहुत अच्च्चा
Is gazal ko aakida parveen Sahiba ne bahut badhiba bahut badhiya se gaayi hai. Aur gulam ali sahab ne jin paktiyo ko chhod diya hai wo unko bhi gayi hai.
नमस्ते शायद जहा तक याद है मेने ये वाला स्टेनजा सुना है दिल्ली में सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में गुलाम अली जी का लाइव कार्यक्रम हुआ था उसमे उन्होंने ये लेने भी जोड़ी थी
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