Monday, June 30, 2008

दिल लगा कर तुम ज़माने भर के धोख़े खाओगे

अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन से आप पहले भी यहां सुख़नसाज़ पर रू-ब-रू हो चुके हैं. आज पेश है उनकी एक और नायाब ग़ज़ल 'आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे'



आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
छाएंगे जब-जब अंधेरे, ख़ुद को तनहा पाओगे

हर हसीं मंज़र से यारो फ़ासले क़ायम रखो
चांद गर धरती पे उतरा, देख कर डर जाओगे

आरज़ू, अरमान, ख़्वाहिश, जुस्तजू, वादे, वफ़ा
दिल लगा कर तुम ज़माने भर के धोख़े खाओगे

ज़िन्दगी के चन्द लमहे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खु़द भी गुम हो जाओगे

अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन को यहां भी सुनें:

तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर न हो
ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से

7 comments:

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया. बहुत आभार.

अमिताभ मीत said...

वाह साहब. सुबह सुबह मस्त कर दिया. इन का अंदाज़ ही जुदा है.

siddheshwar singh said...

मौजा ही मौजा !

रंजू भाटिया said...

ज़िन्दगी के चन्द लमहे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खु़द भी गुम हो जाओगे

बहुत खूब सुनाने का शुक्रिया

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Shukriya ...bahut pasand aaya ...

Anonymous said...

शायर हैं जयपुर के ही दिनेश ठाकुर.

Ashok Pande said...

जानकारी के लिये धन्यवाद विनय जी.