अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन से आप पहले भी यहां सुख़नसाज़ पर रू-ब-रू हो चुके हैं. आज पेश है उनकी एक और नायाब ग़ज़ल 'आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे'
आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
छाएंगे जब-जब अंधेरे, ख़ुद को तनहा पाओगे
हर हसीं मंज़र से यारो फ़ासले क़ायम रखो
चांद गर धरती पे उतरा, देख कर डर जाओगे
आरज़ू, अरमान, ख़्वाहिश, जुस्तजू, वादे, वफ़ा
दिल लगा कर तुम ज़माने भर के धोख़े खाओगे
ज़िन्दगी के चन्द लमहे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खु़द भी गुम हो जाओगे
अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन को यहां भी सुनें:
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर न हो
ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
-
मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
7 comments:
आनन्द आ गया. बहुत आभार.
वाह साहब. सुबह सुबह मस्त कर दिया. इन का अंदाज़ ही जुदा है.
मौजा ही मौजा !
ज़िन्दगी के चन्द लमहे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खु़द भी गुम हो जाओगे
बहुत खूब सुनाने का शुक्रिया
Shukriya ...bahut pasand aaya ...
शायर हैं जयपुर के ही दिनेश ठाकुर.
जानकारी के लिये धन्यवाद विनय जी.
Post a Comment