मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ में सुनिये मिर्ज़ा ग़ालिब की विख्यात ग़ज़ल:
मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए
जोश-ए-कदः से बज़्म चराग़ां किये हुए
मांगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवस
ज़ुल्फ़-ए-सियह रुख़ पे परीशां किये हुए
इक नौबहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह
चेहरा फ़रोग़-ए-मै से गुलिस्तां किये हुए
जी ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किये हुए
ग़ालिब हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
बैठे हैं हम तहया-ए-तूफ़ां किये हुए
इसी ग़ज़ल को इक़बाल बानो से सुनिये 'कबाड़ख़ाने' पर
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
9 comments:
जी ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किये हुए
ati sunder
wah!!!
इक नौबहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह
चेहरा फ़रोग़-ए-मै से गुलिस्तां किये हुए
जी ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किये हुए
इतनी सुंदर गजल को बेहद सुंदर आवाज़ में सुनाने के लिए शुक्रिया
पहले ये गज़ल मेंहदी हसन साहब की आवाज में ही सुनी थी आज आपके यहां रफी साहब की आवाज में भी सुनने का मौका मिल गया
वाह
मस्त मस्त कर दिया अशोक भाई. वाह ! अच्छा चलिए रफ़ी साहब की आवाज़ में ही एक और ग़ालिब की ग़ज़ल मेरी ओर से भी .... आज रात ही ? या कल सुबह ? रात भर सुनता हूँ फिर तय करता हूँ कौन सी .... क्या ख़याल है ??
वाह वाह! आनन्द आ गया.
वाह! आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं, नियमित लिखते रहें
वाह वाह
बहुत वक्त बाद मिर्जा गालिब के ये गजल सुनवाने के लिए शुक्रिया अशोकजी,
मेरी पसंदीदा पंक्तियां के लिए भी -
जी ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किये हुए
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