जनाब अहसान दानिश की ग़ज़ल पेश है ख़ान साहब की अतुलनीय आवाज़ में.:
न सियो होंट, न ख़्वाबों में सदा दो हम को
मस्लेहत का ये तकाज़ा है भुला दो हम को
हम हक़ीक़त हैं, तो तसलीम न करने का सबब
हां अगर हर्फ़-ए-ग़लत हैं तो मिटा दो हम को
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक
सोच कर ज़ुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा दो हम को
मक़सद-जीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर
बैठ जाएंगे जहां चाहे बिठा दो हम को
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
4 comments:
hmesha ki traha se khushnuma
बहुत बढिया ।आभार।
पहली बार हो या हज़ारवीं बार, मज़े में कोई कमी नहीं है खां साहब की गायकी में।
हम हक़ीक़त हैं, तो तसलीम न करने का सबब
हां अगर हर्फ़-ए-ग़लत हैं तो मिटा दो हम को।
वाह क्या बात है ! सुनवाने का शुक्रिया
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