जब उस्ताद गा रहे हैं तो शब्द का वज़न क़ायम न रहे ऐसा मुमकिन ही नहीं.मेहंदी हसन साहब ने ज़िन्दगी के पचास से ज़्यादा बरस ग़ज़ल को सँवारते में झोंक दिये .उन्होंने महज़ ग़ज़ल गाई ही नहीं एक माली की तरह मौसीक़ी की परवरिश की. वे शास्त्रीय संगीत के इतने बड़े जानकार हैं कि राग-रागिनियाँ जिनकी बाँदी बनकर उनके गले की ग़ुलामी के लिये हर चंद तैयार रहती हैं लेकिन फ़िर भी वे ग़ज़ल गाते वक़्त जिस तरह से शायर की बात को बरतते हैं वह लासानी काम है.यही वजह है कि ग़ज़ल का यह बेजोड़ गुलूकार अपनी ज़िन्दगी में ही एक अज़ीम शाहकार बन गया है.
आइये मुलाहिज़ा फ़रमाइये एक बेमिसाल बंदिश जिसमें मेहंदी हसन घराने के वरक़ जगमगा उट्ठे हैं.
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
8 comments:
mood fresh kar diya hai ese sunwa kar...thanx
गजब
हमनें लाजवाब गज़ल सुनी.
लाकलाम.
यह गजल हेड फोन न होने के कारण नहीं सुन पा रहा हूँ । पर एक बार सुनी है ।
बहुत खूब संजय भाई. सुकून से सुना ... बहुत सुकून मिला.
जीत ले जाए मुझे कोई नसीबों वाला
जिंदगी ने मुझे दावों पे लगा रखा है।
खूबसूरत ग़ज़ल और उस्ताद जी की अदायगी गज़ब । शुक्रिया
जी हां,
एक सुनहरा वरक!
सचमुच सुनहरा!!
संजय जी,
बड़ी दिलकश महफ़िल सजा रहे हैं आप !!!
बहुत मेहरबानी होगी अगर कभी राजेंद्र मेहता-नीना मेहता की बात हो सुखनसाज में
बहुत कम सुना और कहा गया है इस जोड़ी के बारे में, लेकिन कुछ नायाब मोती उन्होंने भी दिए है-
"तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना ........"
या फिर
"इधर आओ - एक बार फिर प्यार कर लें "
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