एक ज़माने से कलकत्ते में रहते रहते कुछ बांग्ला गीत दिल-ओ-दिमाग़ पे छा गए हैं ..... कहते हैं संगीत को किसी भाषा विशेष से कोई ख़ास मतलब नहीं ...... संगीत भाषाओं की ज़द से परे अपना असर सब के दिलों पर एक सा करता है.
आज सुनिए गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर की ये Composition - आवाज़ है शकुन्तला बरुआ की ...
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'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
4 comments:
आप सही फ़रमा रहे हैं कि संगीत का भाषा से कोई खा़स मतलब नहीं, क्योंकि ये जो सुर हैं, और उनका लालित्य है, वह देश , काल , और समाज से परे है.
यह अपने आप में ही एक संपूर्ण भाषा है.या एक मात्र भाषा, जो दिलों को तोड़ती नही , वरन जोड़ती है.
ऐसे ही गीतों सेऔर नवाजें...
जहाँ तक मुझे पता है इसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उस वक्त लिखा था जब रानी विक्टोरिया भारत आईं थीं।
गुरुदेव की इस सुंदर रचना को पेश करने का आभार...
aamee cheenee go..
हां, मैने भी( कुछ-कुछ) चीन्ह लिया आपकी पसंद को. यह तो बहुत अच्छा है. शकुंतला बरुआ को पहली बार सुन रहा हूं. बहुत ही गजब की आवाज है यह तो !
सुंदर!
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