Thursday, October 9, 2008

आमी चीनी गो चीनी - "गुरदेव"


एक ज़माने से कलकत्ते में रहते रहते कुछ बांग्ला गीत दिल-ओ-दिमाग़ पे छा गए हैं ..... कहते हैं संगीत को किसी भाषा विशेष से कोई ख़ास मतलब नहीं ...... संगीत भाषाओं की ज़द से परे अपना असर सब के दिलों पर एक सा करता है.

आज सुनिए गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर की ये Composition - आवाज़ है शकुन्तला बरुआ की ...



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4 comments:

दिलीप कवठेकर said...

आप सही फ़रमा रहे हैं कि संगीत का भाषा से कोई खा़स मतलब नहीं, क्योंकि ये जो सुर हैं, और उनका लालित्य है, वह देश , काल , और समाज से परे है.

यह अपने आप में ही एक संपूर्ण भाषा है.या एक मात्र भाषा, जो दिलों को तोड़ती नही , वरन जोड़ती है.

ऐसे ही गीतों सेऔर नवाजें...

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

जहाँ तक मुझे पता है इसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उस वक्त लिखा था जब रानी विक्टोरिया भारत आईं थीं।

गुरुदेव की इस सुंदर रचना को पेश करने का आभार...

siddheshwar singh said...

aamee cheenee go..
हां, मैने भी( कुछ-कुछ) चीन्ह लिया आपकी पसंद को. यह तो बहुत अच्छा है. शकुंतला बरुआ को पहली बार सुन रहा हूं. बहुत ही गजब की आवाज है यह तो !

Unknown said...

सुंदर!