Friday, October 17, 2008

ये ज़िन्दगी तो मुहब्बत की ज़िन्दगी न हुई


सुख़नसाज़ पर पिछले दिनों एक बेहतरीन वीडियो के ज़रिये उस्ताद मेहंदी हसन साहब से जिस तरह की मुलाक़ात हुई वह रोंगटे कर देने वाली थी. क्या बला की सी सादगी और इतनी सिनीयरटी होने के बावजूद एक तालिब ए इल्म बने रहने का अंदाज़...हाय ! लगता है अल्लाताला ने इन महान फ़नक़ारों की घड़ावन अपने ख़ास हाथों से की है.
(वरना थोड़ा सा रेंक लेने वाले भांड/मिरासी भी मुझसे कहते है भैया एनाउंसमेंट करते वकत हमारे नाम के आगे जरा उस्ताद लगा दीजियेगा) शिद्दत से ढूँढ रहा था एक ऐसी ग़ज़ल जो तसल्ली और सुक़ून के मेयार पर ठहर सी जाती हो. क्या है कि उस्ताद जी को सुनने बैठो तो एक बड़ा ख़तरा सामने रहता है और वह यह कि उन्हें सुन लेने के बाद रूह ज़्यादा बैचैन हो जाती है कि अब सुनें तो क्या सुनें...? मीत भाई,शायदा आपा,पारूल दी,सिध्दू दा और एस.बी सिंह साहब कुछ मशवरा करें क्या किया जाए.न सुनें तो चैन नहीं ...सुन लेने के बाद भी चैन नहीं...

हाँ एक बात बहुत दिनों से कहने को जी बेक़रार था. आज कह ही देता हूँ.उस्ताद मेहंदी हसन को सुनने के लिये क्या कीजे कि शायरी का जादू और आवाज़ का कमाल पूरा का पूरा ज़हन में उतर जाए...बहुत सोचा था कभी और जवाब ये मिला था कि सबसे पहले तो अपने आप को बहुत बड़ा कानसेन भी न समझें.समझें कि उनकी क्लास में आज ही भर्ती हुए हैं और ग़ज़ल दर ग़ज़ल दिल नाम की चीज़ को एकदम ख़ाली कर लें (आप कहेंगे ये तो रामदेव बाबा की तरह कपालभाती सिखा रहा है) आप देखेंगे कि जो स्टेटस ध्यान के दौरान बनता है वह मेहंदी हसन साहब बना देते हैं.दुनिया जाए भाड़ में;पूरे आलम में बस और बस मेहंदी हसन तारी होते हैं.यक़ीन न आए तो ये ग़ज़ल सुन लीजिये वरना बंदा जूते खाने को तैयार है.


8 comments:

Sajeev said...

waah ustaad waah

Unknown said...

बहुत ही बढिया ।

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया.

Ashok Pande said...

... तेरे बग़ैर कभी घर में रौशनी न हुई!

ग़ज़ब!

एस. बी. सिंह said...

भाई उस्ताद मेहंदी हसन साहब को सुनने से सुकून मिले तब भी और बेचैनी मिले तब भी फ़ायदा तो अपना ही रहता है । अमीर खुसरो का एक दोहा याद आ रहा है--

खुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गई तो पीया मोरे , हारी, पी के संग॥

खूब सूरत ग़ज़ल सुनवाने का शुक्रिया।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मेँहदी हसन साहब..
इबादत करने के बाद ही
जो उन्हेँ मिलता है
वो हम लोगोँ के लिये
बाँट देते हैँ....
बन्दगी है !!
कुबुल किसने की क्या पता !! :)
- लावण्या

दिलीप कवठेकर said...

yakeen hai.

siddheshwar singh said...

संजय दद्दा,
आपने जो पूछा है उसके बारें बस इतना ही कहना है-

"जी में रखँ तो जी जले ,कहूँ तो मुख जल जाय.."