कभी कभी देर रात या सुबह सुबह जब ये आवाज़ सुनता हूँ तो किसी और जहाँ में चला जाता हूँ ..... और ये ग़ज़ल भी कुछ ऐसी ही है ...
आप भी सुनें आबिदा परवीन की आवाज़ में ये ग़ज़ल :
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क्या ख्वाब था वो जिसकी ताबीर नज़र आई
कुछ हाथ नज़र आए, ज़ंजीर नज़र आई
उस शोख के लहजे में तासीर ही ऎसी थी
जो बात कही उस ने, तासीर नज़र आई
वो ऎसी हक़ीक़त है, जिसने भी उसे सोचा
अपने ही ख़यालों की तस्वीर नज़र आई
ता-हद्द-ए-नज़र मेरे आंसू भी लहू भी था
ता-हद्द-ए-नज़र तेरी जागीर नज़र आई
शायद वो "सफ़ी" उस का एजाज़-ए-नज़र होगा
पानी जो कहीं देखा, शमशीर नज़र आई
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
2 comments:
उस शोख के लहजे में तासीर ही ऎसी थी
जो बात कही उस ने, तासीर नज़र आई
इस आवाज़ में जो जादू है वह दिल के अन्दर तक उतर जाता है ..सुनवाने का शुक्रिया
क्या ख्वाब था वो जिसकी ताबीर नज़र आई
कुछ हाथ नज़र आए, ज़ंजीर नज़र आई
उस शोख के लहजे में तासीर ही ऎसी थी
जो बात कही उस ने, तासीर नज़र आई
दिलकश ग़ज़ल सुनवाने के लिए शुक्रिया...
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