Friday, October 18, 2013
माना कि तुम कहा किये और वो सुना किये
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Labels: तलत महमूद, मिर्ज़ा ग़ालिब
Thursday, October 17, 2013
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नहीं
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Labels: उस्ताद मेहदी हसन, नासिर काज़मी
Wednesday, October 16, 2013
दिल के ज़ख्म दिखा कर हमने, महफ़िल को गरमाया है
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Labels: कहना उसे, फरहत शाहज़ाद, मेहदी हसन
Tuesday, October 15, 2013
हिज्र की रात और इतनी रौशन
आज इस ब्लॉग पर आप के लिए ‘जिगर’ मुरादाबादी की ग़ज़ल है मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेग़म अख्तर के स्वर में –
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Labels: जिगर मुरादाबादी, बेग़म अख्तर
Monday, October 14, 2013
राग पुराना तेरा भी है मेरा भी
कोई बीसेक साल पहले आए अल्बम ‘सजदा’ ने ख़ासी लोकप्रियता हासिल की थी. शाहिद कबीर की लिखी एक ग़ज़ल लता मंगेशकर और जगजीत सिंह ने साथ ग़ा कर मशहूर की थी. आज सुख़नसाज़ यही पेश करता है आपके वास्ते –
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Labels: जगजीत सिंह, लता मंगेशकर, शहीद कबीर, सजदा
Sunday, October 13, 2013
इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई
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Labels: उस्ताद मेहदी हसन, शहज़ाद अहमद शहज़ाद
Saturday, October 12, 2013
फिर मेरे आग़ोश में गिर जाइये
ये ग़ज़ल गुलज़ार और जगजीत सिंह की कमेन्ट्री के साथ कुछ साल पहले एच एम वी द्वारा 'फ़िफ़्टी ईयर्स आफ़ पापुलर गज़ल' के अन्तर्गत जारी हुई थी. जगजीत सिंह के मुताबिक मास्टर मदन सिर्फ़ तेरह साल जिए लेकिन यह सत्य नहीं है. इस के अलावा इस अल्बम में बताया गया है कि इन गज़लों का संगीत मास्टर मदन का है. यह भी सत्य नहीं है. ये गज़लें १९३४ में रिकार्ड की गई थीं यानी तब उनकी उम्र ७ साल थी. असल में इन गज़लों को १९४७ में 'मिर्ज़ा साहेबां' फ़िल्म का संगीत देने वाले पं अमरनाथ ने स्वरबद्ध किया था. सागर निज़ामी की इन गज़लों में मास्टर मदन की आवाज़ का साथ स्वयं पं अमरनाथ हार्मोनियम पर दे रहे हैं. तबले पर हीरालाल हैं और वायलिन पर मास्टर मदन के अग्रज मास्टर मोहन:
यूं न रह रह के हमें तरसाइए
आइये, आ जाइये, आ जाइये
फिर वही दानिश्ता ठोकर खाइये
फिर मेरे आग़ोश में गिर जाइये
मेरी दुनिया मुन्तज़िर है आपकी
अपनी दुनिया छोड़ कर आ जाइये
ये हवा 'साग़र' ये हल्की चांदनी
जी में आता है यहीं मर जाइये
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Labels: मास्टर मदन
Thursday, June 13, 2013
उस्ताद मेहदी हसन की पहली बरसी है आज
मेरे पास मेहदी हसन साहब का एक तीन सीडी वाला सैट है. विशुद्ध शास्त्रीय शैली में गाई उस्ताद की ग़ज़लों की इस पूरी श्रृंखला के नगीने मैं, जब-तब एक-एक कर आपकी खि़दमत में पेश करूंगा. आज आप बस उस्ताद को बोलते हुए सुनिए. महफ़िल शुरू करने से पहले वे अपने गायन का संक्षिप्त इतिहास बताते हुए ग़ज़ल-गायकी और शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को तो बताते ही हैं, उर्दू शायरी के बड़े नामों का ज़िक्र भी बहुत अदब और मोहब्बत के साथ करते हैं.
मेहदी हसन साहब को श्रद्धांजलि के तौर पर यह बहुत ख़ास प्रस्तुति:
Posted by Ashok Pande at 8:55 PM 3 comments
Labels: मेहदी हसन, श्रद्धांजलि
Friday, September 28, 2012
अगर वो याद आ जाएं न अश्कों को बहाना
मेहदी हसन साहब की आवाज़ में एक और फ़िल्मी गीत -
तमन्नाओं की नगरी में कोई फ़रियाद मत करना
भुला देना सभी वादे किसे को प्यार मत करना ...
Posted by Ashok Pande at 11:33 AM 4 comments
Labels: उस्ताद मेहदी हसन, मेहदी हसन के फ़िल्मी गीत
Wednesday, September 26, 2012
कह दो कि ये तो जाने-पहचाने आदमी हैं
ज़ाहिद न कह बुरी के ये मस्ताने आदमी हैं
तुझको लिपट पड़ेंगे दीवाने आदमी हैं.
ग़ैरों की दोस्ती पर क्यूँ ऐतबार कीजे
ये दुश्मनी करेंगे बेगाने आदमी हैं.
तुम ने हमारे दिल में घर कर लिया तो क्या है
आबाद करते. आख़िर वीराने आदमी हैं
क्या चोर हैं जो हम को दरबाँ तुम्हारा टोके
कह दो कि ये तो जाने-पहचाने आदमी हैं
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