मैंने एंकरिंग करते हुए देखा है कि कई बार फ़नकार ग़ज़ल गाते गाते एकदम अगला मतला भूल जाता है. गाना शुरू किया था बिना डायरी देखे क्योंकि बहुत गाई हुई चीज़ है लेकिन गाने में कुछ ऐसा मन लग गया कि शब्द बिसरा बैठे . तो ऐसे में सुनकार से अच्छा आसरा कोई और नहीं होता क्योंकि उसे तो अपने महबूब गायक की ग़ज़ल के बोल मिसरा-दर मिसरा याद होते हैं.
उस्ताद मेहंदी हसन साहब आज फ़िर सुख़नसाज़ की जाजम पर तशरीफ़ ला रहे हैं और ग़ज़ल कुछ ऐसी है कि मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि वह उस्तादजी को याद हो न, आप-हम सुनने वालों को ज़रूर याद होगी. तो बस इतनी ही भूमिका है आज की इस पेशकश में..
जी हाँ ;बिलाशक आप भी साथ साथ गाइये. जहाँ मानसून आ चुका है वहाँ तो इस ग़ज़ल को सुनने का मज़ा है ही और जहाँ मेघराज आने में इतरा रहे हैं,इस ग़ज़ल के बजने के बाद शायद मेहंदी हसन साहब की महफ़िल में शरीक़ हो जाएँ ; इंशाअल्ला !
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
6 comments:
वाह क्या कहने !
नाम ही काफ़ी है, बहुत ख़ूब
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
सुरों का मानसून भी सुखनसाज़ पर आ गया है!!!
बारीश की फ़ुहारें यूंही आयें,यूंही तन मन भिगायें,
दिया यूंही जलाये रखना......
अस्सी के दशक में यह गज़ल राजकुमार रिज़वी की आवाज में सुनीं थी तबसे ये हमारी मनपसन्द में से एक है
आज मैंहदी हसन साहब की आवाज में पहली बार सुनी, आज तो इसी को बार बार सुनने का मन है
waah ! waah ! .. great rendition by maestro Mehdi hasan ji !! Thanks a tonne for the post !
जवाब ही नहीं मेहदी साहब का ... वाह
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