Wednesday, June 17, 2009

मरने की दुआएँ क्यों माँगू;जीने की तमन्ना कौन करे


वली मोहम्मद सुख़नसाज़ के मुरीदों के लिये अनजाना नाम नहीं है.
उन्हें सुनें तो लगता है जैसे सहरा में एक बाबा बाजा लेकर बैठ गए हैं और
कन्दील की मध्दिम रोशनी में आपको मनचाही बंदिशें सुना रहे हैं.
सनद रहे वली मोहम्मद जैसे गुलूकार तब परिदृश्य पर आए थे जब ज़माने
की गति ऐसी तूफ़ानी और बेपरवाह नहीं थी. सुक़ून और तसल्ली के दौर
के गायक रहे हैं वली मोहम्मद. उम्दा क़लाम को चुनना, गुनना और फ़िर गाना
उस दौर की ख़ासियत थी. मेरा प्यारा वतन मालवा इन दिनों ख़ासा उमस
भरा है;ऐसे में ऐसी रचना सुनना एक अलग रूहानी अहसास देता है.
मुलाहिज़ा फ़रमाएँ बाबा वली मोहम्मद की ये बेशक़ीमती रचना.


7 comments:

Third Eye said...

मैं मुरीद हूँ वली मोहम्मद का.

एक रोज़ क्या हुआ
ख़ामोश थी फ़िज़ाँ.

थे आसमाँ पे चाँद,
तारे न चाँदनी.

यानी थी दोपहर.

श्यामल सुमन said...

अच्छा लगा।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ओम आर्य said...
This comment has been removed by the author.
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत खूब ..
शुक्रिया इस नायाब नगीने के लिये
- लावण्या

Uday Prakash said...

वाह! कालेज के दिनों में गाते थे... आज सुन कर समय लौट आया, उल्टे पांव! इतने दबे पांव कि वली मोहम्मद की आवाज़ में कोई खलल न पैदा हो!

gazalkbahane said...

बेशकीमती है आपकी प्र्स्तुति
श्याम सखा
‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
इस गज़ल को पूरा पढें यहां
श्याम सखा ‘श्याम’

http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

shriniwas said...

Shubhan Allah kya aawaj hai K.L. Sehgal sahab aur Pankaj Malik sahab ki yaad taaza kar di bahut hi pursukoon aawaj hai..........