Wednesday, June 3, 2009

ख़ुशबू तुम्हारी ज़ुल्फ़ की फूलों से कम नहीं !


ग़ज़ल के जगमगाते कलश कंठ से जब कोई रचना झर रही हो तो लगता है जीवन के बाक़ी सुखों की तलाश बेमानी है. छोटी से रचना है उस्ताद मेहंदी हसन साहब की गाई हुई लेकिन इतने में भी वे बता देते हैं कि वे किस बलन के फ़नकार हैं.आलाप से ही जाँच लीजिये कि क्या तसल्ली है किसी बंदिश को डिज़ाइन करने की. उस्तादजी के बारे में सारी प्रशंसाएँ छोटी पड़ जाएं तो लगता है उनके हाथ का बाजा (हारमोनियम) ही सुन लीजै. हाय ! क्या रवानी है रीड्स पर . कितने हैं जो ख़ुद गाते हुए इस सहजता से बाजा बजाते जाते हैं.उस्ताद के बारे में यह कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा कि वे बित्ती सी रचना को करिश्मा बनाने का हुनर रखते हैं.अब इस रचना का क्राफ़्ट ही देख लीजियेगा...बड़ा सादा है लेकिन मेहंदी हसन हैं जनाब कि शायर के दामन के लिये दाद बटोर लेते हैं.



हाँ एक ख़ास बात बताता चलूँ ? भारतरत्न लता मंगेशकर तनहाई में जिस एकमात्र गायक की रचनाएँ सुनना पसंद करती हैं उसका नाम मेहंदी हसन है.

7 comments:

Asha Joglekar said...

उन्होने डूब के गाया है और सुनने वालों ने उतना ही डूब के सुना है । शुक्रिया ।

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब जितनी बार सुनो कम लगता है धन्यवाद्

pallavi trivedi said...

is ghazal ko yaad dilane ke liye shukriya...

pallavi trivedi said...

is ghazal ko yaad dilane ke liye shukriya...

neeraj1950 said...

Subhan Allah..lajawab.

neeraj

दिलीप कवठेकर said...

क्या खूबसूरत खयाल है,

दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं,

ये जो एहसास है वह कितना सकारात्मक है, ज़िंदगी को जीने के लिये..

मेंहदी साहब बादशाह-ए-गज़ल है..

सागर नाहर said...

इस गज़ल को कई बार सुनी पर हर बार उतना ही आनन्द आया जितना पहली बार मिला था।
ये हसन साहब की गायकी का ही कमाल है, जिसने एक सामान्य रचना को अमर बना दिया।
बहुत बहुत धन्यवाद एक बार फिर सुनवाने के लिये।