अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन बन्धुओं की ग़ज़लों को मैं सुख़नसाज़ और कबाड़ख़ाने पर पहले भी लगा चुका हूं. आज सुनिये इन्हीं से हसरत जयपुरी साहब की यह रचना
चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल
हम वहाँ जाये जहाँ प्यार पे पहरे न लगें
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें
कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल
अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उँगली न उठे
अपनी चाहत पे जहाँ कोई दुश्मन न हँसे
छेड़ दे प्यार से तू साज़-ए-मोहब्बत-ए-ग़ज़ल, चल
पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में
सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में
बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल, चल
चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल
(डाउनलोड लिंक: चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल)
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
-
मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
7 comments:
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल
वैसे यह गज़ल पुरी की पुरी बेहद पसन्द पर .........इन पंक्तियो से जो सुकून मिलता है उसको बयान नही कर सकता.............यह नज़्म मुझे रोज़ सोने मे मदद करती है ...............बहुत बहुत शुक्रिया.
हुसैन बन्धुओं के क्या कहने, धन्यवाद!
sadaabahaar aavaazen...thx
बहुत दिनों बाद सुनी ... A much needed change ... Thanks a ton.
अहा!! वाह!! आनन्द आ गया.
isi gajal pe meri prastuti...
http://ajitdiary.blogspot.com/2008/01/blog-post_28.html
kya baat hai sahab kya baat hai aise gayak aur aise shayar roz roz nahi aatey.........
Post a Comment