हालांकि यह ग़ज़ल पहले भी यहां सुनवाई जा चुकी है. बहुत विख्यात है. बहुत बहुत बार सुनी-सुनाई जा चुकी है मगर इस ब्लॉग की सौवीं पोस्ट के लिए मुझे यही सबसे उचित लगी.
हफ़ीज़ जालन्धरी साहब का क़लाम. उस्ताद मेहदी हसन ख़ान साहेब की वही मख़मल आवाज़ ... उफ़! ज़माने भर के ग़म या इक तेरा ग़म ...
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
तेरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे
ज़माने भर के ग़म या इक तेरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे
अगर तू इत्तिफ़ाक़न मिल भी जाए
तेरी फ़ुरकत के सदमे कम न होंगे
दिलों की उलझनें बढ़ती रहेंगी
अगर कुछ मशविरे बाहम न होंगे
हफ़ीज़ उनसे मैं जितना बदगुमां हूं
वो मुझ से इस क़दर बरहम न होंगे
(फ़ुरकत: विरह, बाहम: आपस में)
डाउनलोड लिंक: मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
13 comments:
बहुत बहुत शुक्रिया...इस ग़ज़ल को जब सुनो नयी लगती है....मेहदी साहेब ने क्या गया है इसे...सुभान अल्लाह .
नीरज
बहुत मनभावन ! शुक्रिया !
.....और इस शतकीय यात्रा पर बधाईयाँ !
Kuch gazal itni meethi hai ki roj bhi suno to man nahi bharta
ye unhi gazalo.N mein se hain
shatak pure karne par hardik badhayi sweekar kare
ग़ज़ल के मुरीदों का ये गुलशन आबाद रहे.
पिछली टिप्पणी गलती से यहाँ हो गई थी ...बहुत बधाई शतकीय पोस्ट पर.
सौबी पोस्ट पर बधाई और शुभकामना हजारवी पोस्ट लिखे.
बहुत बधाई।
सैकड़ा पूरा करने की बधाई।
Ye gazal seedhe dil meM utar gayee.
100 post ho gaye , badhaeeya.
Shubh-Shatak !
ग़ज़ल के मुरीदों का ये गुलशन आबाद रहे.
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