Sunday, October 13, 2013

इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई


ग़ज़ल शहज़ाद अहमद शहज़ाद की है. और आवाज़ खानसाहेब मेहदी हसन खान साहेब की-



जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई
अब ख़ाक उड़ाने को बैठे है तमाशाई

तारों की ज़िया दिल में इक आग लगाती है
आराम से रातों को सोते नहीं सौदाई

रातों की उदासी में ख़ामोश है दिल मेरा
बेहिस हैं तमन्नाएं नींद आई के मौत आई

अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता
इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई

2 comments:

ashokkhachar56@gmail.com said...

बहुत सुन्दर .

Unknown said...

रातों की उदासी में ख़ामोश है दिल मेरा
बेहिस हैं तमन्नाएं नींद आई के मौत आई

अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता
इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई
वाह उस्ताद क्या खुब गाया है। आपने