Saturday, October 12, 2013

फिर मेरे आग़ोश में गिर जाइये

दो ढाई साल की उम्र से गाना शुरू कर देने वाले और मात्र चौदह साल की नन्ही आयु में स्वर्गवासी हो गए मास्टर मदन की प्रतिभा का लोहा स्वयं कुन्दन लाल सह्गल ने भी माना था. उनका जन्म २८ दिसम्बर १९२७ को जलन्धर के एक गांव खा़नखा़ना में हुआ था, जो प्रसंगवश अकबर के दरबार की शान अब्दुर्ररहीम खा़नखा़ना की भी जन्मस्थली था. ५ जून १९४२ को हुई असमय मौत से पहले उनकी आवाज़ में आठ रिकार्डिंग्स हो चुकी थीं. 


ये ग़ज़ल गुलज़ार और जगजीत सिंह की कमेन्ट्री के साथ कुछ साल पहले एच एम वी द्वारा 'फ़िफ़्टी ईयर्स आफ़ पापुलर गज़ल' के अन्तर्गत जारी हुई थी. जगजीत सिंह के मुताबिक मास्टर मदन सिर्फ़ तेरह साल जिए लेकिन यह सत्य नहीं है. इस के अलावा इस अल्बम में बताया गया है कि इन गज़लों का संगीत मास्टर मदन का है. यह भी सत्य नहीं है. ये गज़लें १९३४ में रिकार्ड की गई थीं यानी तब उनकी उम्र ७ साल थी. असल में इन गज़लों को १९४७ में 'मिर्ज़ा साहेबां' फ़िल्म का संगीत देने वाले पं अमरनाथ ने स्वरबद्ध किया था. सागर निज़ामी की इन गज़लों में मास्टर मदन की आवाज़ का साथ स्वयं पं अमरनाथ हार्मोनियम पर दे रहे हैं. तबले पर हीरालाल हैं और वायलिन पर मास्टर मदन के अग्रज मास्टर मोहन:




यूं न रह रह के हमें तरसाइए
आइये, आ  जाइये, आ जाइये

फिर वही दानिश्ता ठोकर खाइये
फिर मेरे आग़ोश में गिर जाइये

मेरी दुनिया मुन्तज़िर है आपकी
अपनी दुनिया छोड़ कर आ जाइये

ये हवा 'साग़र' ये हल्की चांदनी
जी में आता है यहीं मर जाइये

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