इन दिनों मन कई कारणों से बुझा बुझा सा रहा है सो कई बार अपने पीसी के सामने आकर बैठा भी लेकिन कुछ लिखने को जी नहीं चाहा;इसी बीच मुंबई के घटनाक्रम से दिल और घबरा सा गया है.हालाँकि सिर्फ़ और सिर्फ़ संगीत ही एक आसरा बचा रहा जिसने दिल को तसल्ली बख्शी है . एक ग़ज़ल मेहंदी हसन साहब की सुन रहा हूँ सो मन किया चलो इसी बहाने आपसे दुआ-सलाम हो जाए. बहादुरशाह ज़फ़र की ये रचना कितने जुदा जुदा रंगों में गाई गई है और हर दफ़ा मन को सुक़ून देती है. ज़फ़र का अंदाज़े बयाँ इतने बरसों बाद भी प्रासंगिक लगता है और यही किसी शायर की बड़ी क़ामयाबी है. चलिये साहब ज़्यादा कुछ लिखने की हिम्मत तो नहीं बन रही ..ग़ज़ल सुनें; एक नई लयकारी में इसे शहंशाह ए ग़ज़ल मेहंदी हसन साहब ने अपनी लर्ज़िश भरी आवाज़ में सजाया है.
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
4 comments:
n kisi ki aankh ka noor hun.......
bas kuch nahi kahana
इसे सुनने के बाद कुछ कहने के लिये शब्द ही नहीं बचते।
इसे तो बस महसूस किया जा सकता है और बताया नहीं जा सकता ।
अजीब बेचैनी मन में बस गई है ।
शानदार पोस्ट। शुक्रिया भाई
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