उस्ताद मेहंदी हसन साहब की आवाज़ में ये नग़मा रेडियो के सुनहरी दौर की याद ताज़ा कर देता है. ये भी याद दिलाता है कि धुनें किस क़दर आसान हुआ करती थी; आर्केस्ट्रा के साज़ कितने सुरीले होते थे. इलेक्ट्रॉनिक बाजों का नामोनिशान नहीं था. सारंगी,वॉयलिन,बाँसुरी,सितार और तबले में पूरा समाँ बंध जाता था.हर टेक-रीटेक को वैसा ही दोहराना होता था जैसा म्युज़िक डायरेक्टर एक बार कम्पोज़ कर देता था.सुगम संगीत विधा की पहली ज़रूरत यानी शब्द की सफ़ाई को सबसे ज़्यादा तवज्जो दी जाती थी. लफ़्ज़ को बरतना उस्ताद जी का ख़ास हुनर रहा है. जब शब्द के मानी दिल में उतरने लगे तो उस्ताद अपने अनमोल स्वर से भावों को ऐसा उकेर देते हैं कि शायर की बात सुनने वाले के कलेजे में उतर आती है.मुख़्तसर सी ये रचना इस बात की तसदीक कर रही है.
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
7 comments:
dur hain majilen --benishan rastey....bahut hi khubsurat ghazal aur bemisaal gayaki..
[take -retake mein bhi gayaki mein gaane ki feel kaisey bani rahti hogi...taAjuub hai!.
shayad yahi in legend singers ki gayaki ka kamaal hai...
खुश-अदा कलमकश , खुश आमदीद !!
संजय दद्दा , बहुत दिन बाद आये और भुत उम्दा चीज लाए. यह नग्मा पहली बार सुन, मन जुड़ा गया-कान धन्य हुए.
बेहद सुंदर है...मेहंदी हसन की बात ही क्या है...
बहुत सुंदर!
देर से आए लेकिन बहुत दुरुस्त आए । आपके आलेख से गजल बेहतर ढंग से समझ आई ।
देखिए ख़त्म होगा कब ऐ सिलसिला
बहुत खूब.... दुआ है ऐ सिलसिला कभी ख़त्म न हो।
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