हुमैरा चन्ना से सुनिये मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल:
आईना क्यों न दूं, कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहां से लाऊं, कि तुझ सा कहें जिसे
हसरत ने ला रखा, तिरी बज़्म-ए-ख़याल में
गुलदस्त-ए-निगाह- सुवैदा कहें जिसे
सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिये
वह एक मुश्त-ए-ख़ाक, कि सहरा कहें जिसे
फूंका है किसने गोश-ए-मोहब्बत में अय ख़ुदा
अफ़्सून-ए-इन्तेज़ार, तमन्ना कहें जिसे
(गुलदस्त-ए-निगाह: निगाह का गुलदस्ता, सुवैदा: दिल का काला दाग, हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी: दर ब दर मारे फिरने की अधिकता, मुश्त-ए-ख़ाक: एक मुट्ठी मिट्टी, सहरा: रेगिस्तान, गोश-ए-मोहब्बत: प्रेम अर्थात प्रेमी के कान, अफ़्सून-ए-इन्तेज़ार: प्रतीक्षा का जादू)
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
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मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago
3 comments:
आभार इस प्रस्तुति का. आनन्द आ गया.
कमाल है साहब....क्या बात है !
शुक्रिया
डा.चंद्रकुमार जैन
अशोक जी
जेहनी सुकून तलाश करने वालों के लिए सबसे बेहतरीन जगह है आप का ब्लॉग. संगीत के सागर से ऐसे मोती पेश करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया...वाह.
नीरज
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