ग़ज़ल के जो मुरीद रूहानी तसल्ली तलाशते हैं; उस्ताद मेहंदी हसन उनके लिये एक तीर्थ हैं.ख़ाँ साहब इस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं कि क्लासिकल मूसीक़ी के आसरे के बग़ैर ग़ज़ल का इंतेख़ाब करना बेमानी है. उनके शब्दों की सफ़ाई में जो स्पष्टता सुनाई देती है उसकी ख़ास वजह वही तसल्ली है जिसके शैदाई हैं उस्तादजी. यूँ ऐसे कई गूलूकार सुने हैं जो उस्तादजी की ग़ज़लें गाते हैं लेकिन वह मसखरी ही लगती है. जितना ख़ाँ साहब को सुना और उनकी गायकी को समझा है ..तो जाना है कि यदि आप शायरी और संगीत के पार जाकर किसी रूहानी आस्ताने की तलाश में हैं तो मेहंदी हसन अल्टीमेट नाम है.
मैं ये भी कहना चाहूँगा कि मेहंदी हसन जिस तरह से शायरी को गायकी में ट्रांसलेट करते हैं या बरतते हैं वह बेजोड़ है. उन्होंने अपनी गायकी में फ़िज़ूल के गिमिक नहीं किये हैं और सबसे बड़ी बात यह कि वे ख़ुद अपनी गायकी का मज़ा लेते हैं. ये मज़ा गले से उठने वाली उन हरक़तों या तानों को लेकर होता है जिसे ग़ज़ल शुरू करने के पहले ख़ाँ साहब भी ख़ुद भी बाख़बर नहीं होते. गले इन सुरों को कौन मदू (आमंत्रित) करता है ...अल्लाह जाने...
मेहंदी हसन की गायकी भी तो उसी ऊपरवाले के करिश्मों का पता हैं न ?
'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद
में
-
मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही
होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...
2 years ago