Saturday, July 4, 2009

सुख़नसाज़ की सौवीं पोस्ट


हालांकि यह ग़ज़ल पहले भी यहां सुनवाई जा चुकी है. बहुत विख्यात है. बहुत बहुत बार सुनी-सुनाई जा चुकी है मगर इस ब्लॉग की सौवीं पोस्ट के लिए मुझे यही सबसे उचित लगी.

हफ़ीज़ जालन्धरी साहब का क़लाम. उस्ताद मेहदी हसन ख़ान साहेब की वही मख़मल आवाज़ ... उफ़! ज़माने भर के ग़म या इक तेरा ग़म ...




मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
तेरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे

ज़माने भर के ग़म या इक तेरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे

अगर तू इत्तिफ़ाक़न मिल भी जाए
तेरी फ़ुरकत के सदमे कम न होंगे

दिलों की उलझनें बढ़ती रहेंगी
अगर कुछ मशविरे बाहम न होंगे

हफ़ीज़ उनसे मैं जितना बदगुमां हूं
वो मुझ से इस क़दर बरहम न होंगे

(फ़ुरकत: विरह, बाहम: आपस में)

डाउनलोड लिंक: मोहब्बत करने वाले कम न होंगे

13 comments:

नीरज गोस्वामी said...

बहुत बहुत शुक्रिया...इस ग़ज़ल को जब सुनो नयी लगती है....मेहदी साहेब ने क्या गया है इसे...सुभान अल्लाह .
नीरज

Arvind Mishra said...

बहुत मनभावन ! शुक्रिया !

Arvind Mishra said...

.....और इस शतकीय यात्रा पर बधाईयाँ !

श्रद्धा जैन said...

Kuch gazal itni meethi hai ki roj bhi suno to man nahi bharta
ye unhi gazalo.N mein se hain

shatak pure karne par hardik badhayi sweekar kare

संजय पटेल said...

ग़ज़ल के मुरीदों का ये गुलशन आबाद रहे.

L.Goswami said...
This comment has been removed by the author.
L.Goswami said...

पिछली टिप्पणी गलती से यहाँ हो गई थी ...बहुत बधाई शतकीय पोस्ट पर.

समयचक्र said...

सौबी पोस्ट पर बधाई और शुभकामना हजारवी पोस्ट लिखे.

अजित वडनेरकर said...

बहुत बधाई।

उन्मुक्त said...

सैकड़ा पूरा करने की बधाई।

दिलीप कवठेकर said...

Ye gazal seedhe dil meM utar gayee.
100 post ho gaye , badhaeeya.

मुनीश ( munish ) said...

Shubh-Shatak !

Razi Shahab said...

ग़ज़ल के मुरीदों का ये गुलशन आबाद रहे.