Thursday, June 14, 2012

क्या तसल्ली का ऐसा सुर फिर सुनाई देगा ?

लगता है नहीं...उस्ताद मेहदी हसन के इंतेक़ाल के बाद सर्वत्र एक दु:खद वीराना पसरा पड़ा है.उस्तादजी के जाने से महज़ एक जिस्म नहीं गया,एक आवाज़ नहीं गई,एक रिवायत,एक अंदाज़ एक डिसिप्लीन और एक तसल्ली ही चली गई. जिस तरह से उन्होंने तमाम ग़ज़लों को बरता है वह अब कभी सुनाई नहीं देगा. अनूप जलोटा से बात हो रही थी तो बोले ज़रा सोचिये तकनीक और तमाशे की इस दुनिया में महज़ एक बाजा और तबला लेकर कोई साठ बरस तक बादशाहत करता रहा;क्या ये किसी करिश्मे से कम है. वाक़ई अनूप भाई ठीक कहते हैं. ये तय है कि बीते दस-बारह बरसों से उस्ताद एकदम निश्क्रिय थे पर न जाने क्यों एक आस सी थी कि हम उन्हें एक बार फिर गाता-मुस्कुराता देखेंगे.
ग़ज़ल को नौटंकी बना देने का कारोबार निर्बाध जारी है लेकिन जब उस्ताद के सुरीले आस्ताने पर आ जाएँ तो लगता है कि वाह ! दुनिया कितनी ख़ूबसूरत और सुरीली है...मुलाहिज़ा फ़रमाएँ आपकी मेरी न जाने कितनी बार सुनी हुई ये ग़ज़ल...गुलों में रंग भरे....सुख़नसाज़ पर पहले जारी हो चुकी पेशकश से अलहदा कुछ और विलम्बत...
आज उस्ताद मेहदी हसन के न होने पर जब वक़्त अपनी बेशर्मी से भाग रहा है...मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...ये मध्दिम,मुलायम सी मनभावन कम्पोज़िशन और महसूस करें कि मेहदी हसन का जाना ज़िन्दगी से इत्मीनान का जाना भी है.


3 comments:

बाबुषा said...

आज उस्ताद मेहदी हसन के न होने पर जब वक़्त अपनी बेशर्मी से भाग रहा है...

Unknown said...

unki gajalo ke share hamne apni jindgi ki rah badal di uo hame bahut kucch de gaye unki rahmat hai jindgi ko apno ke share jine ki kala de gya unki gajlo ke sahare.

vijay kumar sappatti said...

बहुत देर से आपकी पोस्ट्स सुन रहा हूँ और पढ़ भी रहा हूँ .. सच्ची बहुत सकूँ मिला है ..
आज आपके ब्लॉग में आकर बहुत सुख मिला , दुःख तो इस बात का है कि , मैंने पहले क्यों नहीं आ पाया .
अब आते रहूँगा .