Wednesday, February 22, 2012

दिल की तबाही भूले नहीं हम, देते हैं अब तक उनको दुआएं


अख्तरी बाई यानी बेगम अख्तर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. मलिका-ए-गज़ल के नाम से विख्यात बेगम अख्तर ने पुराने उस्तादों को जितना बखूबी गाया उतना ही अपने समकालीनों को. ग़ालिब और मीर जैसे उस्ताद शायर की रचनाओं को उन्होंने स्वर दिया तो शकील बदायूनी और सुदर्शन फाकिर को भी. गज़लों के चयन में उनकी सूझबूझ के अलावा शब्दों के विशिष्ट उच्चारण ने उन्हें सबसे अलग पहचान थी. आज उनकी गाई एक कम विख्यात रचना पेश है. शायर हैं तस्कीन कुरैशी.




अब तो यही हैं दिल से दुआएं
भूलने वाले भूल ही जाएँ

वजह-ए-सितम कुछ हो तो बतायें
एक मोहब्बत लाख ख़तायें

दर्द-ए-मोहब्बत दिल में छुपाया
आँख के आँसू कैसे छुपायें

होश और उनकी दीद का दावा
देखने वाले होश में आयें

दिल की तबाही भूले नहीं हम
देते हैं अब तक उनको दुआएं

रंग-ए-ज़माना देखने वाले
उनकी नज़र भी देखते जायें

शग़ल-ए-मोहब्बत अब है ये 'तस्कीन'
शेर कहें और जी बहलायें

2 comments:

love verma said...

अख्तर बेगम को पहली बार सुना, आवाज़ तीर की तरह धंस गई

मैखाने की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं said...

मलिकाएतरन्नुम बेगम अख्तर से अच्छा इसे कोई और गा भी नहीं सकता था|