Friday, November 27, 2009

उनकी गायकी रूहानी तसल्ली का पता देती है.


ग़ज़ल के जो मुरीद रूहानी तसल्ली तलाशते हैं; उस्ताद मेहंदी हसन उनके लिये एक तीर्थ हैं.ख़ाँ साहब इस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं कि क्लासिकल मूसीक़ी के आसरे के बग़ैर ग़ज़ल का इंतेख़ाब करना बेमानी है. उनके शब्दों की सफ़ाई में जो स्पष्टता सुनाई देती है उसकी ख़ास वजह वही तसल्ली है जिसके शैदाई हैं उस्तादजी. यूँ ऐसे कई गूलूकार सुने हैं जो उस्तादजी की ग़ज़लें गाते हैं लेकिन वह मसखरी ही लगती है. जितना ख़ाँ साहब को सुना और उनकी गायकी को समझा है ..तो जाना है कि यदि आप शायरी और संगीत के पार जाकर किसी रूहानी आस्ताने की तलाश में हैं तो मेहंदी हसन अल्टीमेट नाम है.

मैं ये भी कहना चाहूँगा कि मेहंदी हसन जिस तरह से शायरी को गायकी में ट्रांसलेट करते हैं या बरतते हैं वह बेजोड़ है. उन्होंने अपनी गायकी में फ़िज़ूल के गिमिक नहीं किये हैं और सबसे बड़ी बात यह कि वे ख़ुद अपनी गायकी का मज़ा लेते हैं. ये मज़ा गले से उठने वाली उन हरक़तों या तानों को लेकर होता है जिसे ग़ज़ल शुरू करने के पहले ख़ाँ साहब भी ख़ुद भी बाख़बर नहीं होते. गले इन सुरों को कौन मदू (आमंत्रित) करता है ...अल्लाह जाने...



मेहंदी हसन की गायकी भी तो उसी ऊपरवाले के करिश्मों का पता हैं न ?

6 comments:

वाणी गीत said...

तेरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी ना हुई ....ये जिन्दगी तो मुहब्बत की जिंदगी ना हुई

वैसे तो हम गुलाम अली जी के मुरीद हैं ....मगर मेहदी हसन का भी जवाब नहीं ...!!

अफ़लातून said...

हम तो संजय भाई की प्रस्तुति के कायल हैं । हार्दिक बधाई।

siddheshwar singh said...

उस्ताद को साथ ले संजय दद्दा बहुत दिन बाद आए!
काए?
बहुत बढ़िया साहब!

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

भाई, आपकी टिप्पणी पढ़कर यह जानने को व्याकुल हो उठा हूं कि आपने मेहदी हसन साहब की कौन-सी ग़ज़ल सुनवाई है. लेकिन दुर्भाग्य यह कि मेरे यहां तो कोई प्लेयर ही नहीं उभर रहा है. क्रोम पर भी देख लिया और इंटरनेट एक्सप्लोरर पर भी. कुछ कीजिए ना!

Arvind Mishra said...

ओह ठीक एक वर्ष बाद इस नायाब ब्लॉग पर आता हूँ तो देखता हूँ यहाँ चहल पहल नहीं रही ...
क्या हुआ ? प्लीज मुझे मेरे मेल पर जवाब दें ?

Arvind Mishra said...

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drarvind3@gmail.com