Friday, October 10, 2008

कैसे तैयार हुई "कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की"

मेहदी हसन की आवाज़ में राग दरबारी में गाई गई परवीन शाकिर की मशहूर ग़ज़ल "कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की" आप पहले भी सुन चुके हैं. आज सुनिये उस्ताद ख़ान साहेब मेहदी हसन से इस ग़ज़ल की अद्भुत रचना-प्रक्रिया के बारे में.

सात-आठ मिनट के इस वीडियो में उस्ताद आपको ग़ज़ल-गायन की विशिष्ट बारीकियों से रू-ब-रू कराते चलते हैं. शायरी को इज़्ज़त बख़्शने का पहला क़ायदा भी इसे समझा जा सकता है.

एक गुज़ारिश यह है कि पहले पूरा वीडियो अपलोड हो जाने दें. तभी आप इस बातचीत का मज़ा ले पाएंगे

4 comments:

संजय पटेल said...
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संजय पटेल said...

एक महान गुलूकार की. मेरे ध्यान में
ऐसे कई गुलूकार है नए ज़माने के
जो गाते कम हैं एक्सप्लेन ज़्यादा करते हैं
ख़ाँ साहब तब ही बोल रहे हैं जब पूछा गया
है. कई गाने वाले (गाते हुए मज़ाक़ ही कर
रहे होते हैं)जो मेहंदी हसन साहब की चंद
ग़ज़लों को रट कर अपने आप को उस्ताद
समकक्ष समझने लगते हैं जबकि वे ख़ाँ साहब
की पैर की धूल भी नहीं होते हैं.इस वीडियो को
देखें तो समझ में आता है कि कितना लम्बा दरिया
पार कर के कोई मेहंदी हसन बनता है. क्लासिकल
गायकी,शायरी की समझ और् उसके साथ ज़िन्दगी
के दीगर कई मरहलों की कैसी गहरी पकड़. ये वीडियो
एक दस्तावेज़ है ग़ज़ल और् ग़ज़ल गायकी के सबसे
ऊँचे पाये के फ़नक़ार का.

मेहंदी हसन को समझने के लिये कान की नहीं
दिल की ज़रूरत होती है . क्यों मेहंदी हसन अपने
समकालीन और् अपने बाद के तमाम गुलूकारों से
मीलों आगे हैं ; ये बात ये वीडियो देखकर अपने आप समझ में आ जाता है.

इतना भी लिख गया सो भी ज़्यादा है क्योंकि
इसके आगे वाचाल ही कहलाऊँगा.अल्ला हाफ़िज़.

Unknown said...

अनमोल !
classical training और आवाज़ तो बेजोड़ हैं ही,गायक का शायरी के प्रति प्रेम, सशक्त ग़ज़ल गायकी को दर्शाता है|

एस. बी. सिंह said...

वैसे तो हैं दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं के ग़ालिब का है अंदाजेबयां और।

यह बात मेहंदी हसन साहब पर भी लागू होती है।