Sunday, September 28, 2008

रातें थीं चाँदनी जोबन पे थी बहार....हाजी वली मोहम्मद


कुछ आवाज़ों की घड़ावन को सुनकर अल्लाताला को शुक्रिया अदा करने को जी चाहता है.
अब ज़रा ये आवाज़ सुनिये ,कैसा खरज भरा स्वर है और कितनी सादा कहन.
सुख़नसाज़ पर आज तशरीफ़ लाए हैं हबीब वली मोहम्मद साहब.इस नज़्म के ज़रिये
कैसी सुरीली तरन्नुम छिड़ी है आज सुख़नसाज़ पर ज़रा आप भी मज़ा लीजिये न.
कहना सिर्फ़ इतना सा है कि हबीब वली मोहम्मद साहब सादा गायकी का दूसरा
नाम है.उनके घराने में सुरों के साथ ज़्यादा छेड़छाड़ नहीं है.लफ़्ज़ों की सफ़ाई
और कम्पोज़िशन के वज़न पर क़ायम रहना तो कोई इस गुलूकार से सीखे.

अशोक भाई क्या आप सहमत होंगे कि जब शायरी और मूसीक़ी का जादू
सर चढ़ कर बोल रहा हो तो अपनी वाचालता विराम दे देना चाहिये..ग़रज़ कि
जब गायकी बोल रही हो तो तमाम दीगर तब्सिरे बेसुरे मालूम होते है;
क्या कहते हैं आप ?


6 comments:

siddheshwar singh said...

संजय दद्दा,
शुभ प्रभात.

फ़ूल और भौंरे के गीत भरी यह दास्तान सुनी. एक नायाब रत्न आपने पेश किया है. सही कह रहे हैं आप-

"जब शायरी और मूसीक़ी का जादू
सर चढ़ कर बोल रहा हो तो अपनी वाचालता विराम दे देना चाहिये..ग़रज़ कि
जब गायकी बोल रही हो तो तमाम दीगर तब्सिरे बेसुरे मालूम होते है"

फ़िराक साहब क्या खूब कह गए हैं-

तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो,
तुमको देखें कि तुमसे बात करें,

इसलिए प्यारे भाई, इस वक्त आपने जनाब हबीब वली मोहम्मद साहब के स्वर का जो जादू फ़ेरा है उसकी गिरफ़्त में आज इतवार का यह दिन डूआ रहेगा.बाकी सब ठीक.आनंद घन छाए हैं.

सादर-
सिद्धेश्वर सिंह

Ashok Pande said...

असाधारण संगीत है यह. हबीब वली मोहम्मद साहब अज़ीज़तर हो गए. सिद्धेश्वर की हर बात से पूरा पूरा इत्तेफ़ाक़!

एक लाख शुक्रिया संजय भाई!

दिलीप कवठेकर said...

क्या खूब.

इनकी गायकी में सफ़ाई , गोलाई और ठहराव है. सहगल साहब की याद आ गयी. इनके बारे में कुछ और लिखते (व्यक्तिगत जानकारी )

सुरों मे लफ़्फ़ाज़ी करना हर किसी के बस में नहीं, मगर फिर भी कई गायक, इल्म होने के बावजूद सीधी गायकी को तरजीह देतें है.ये भी उनमें लगते है.

शायदा said...

संजय भाई आपने अच्‍छा नहीं किया...आज इसे लगाकर।

एस. बी. सिंह said...

अब जब गानों से कर्णप्रियता और सरलता गायब होती जा रही है आपने यह गीत सुनवा कर फ़िर सरसता में गोता लगवा दिया। शुक्रिया

AVADH said...

Bhai wah! Kya khoob! Ustad Wali Mohd.Saheb ki awaz ki gehrayee ke kya kahne.
Sanjay bhaijaan, meharbaani kar ke Walisaheb ki " Ashiyan jal gaya, gulistan lut gaya, ab yahanse nikal kar kidhar jayenge" bhi zara sunwane ki jehmat karen.
Aabhaar sahit,
Avadh Lal