Tuesday, September 2, 2008

रफ़ी साहब बता रहे है-कितनी राहत है दिल टूट जाने के बाद


मोहम्मद रफ़ी फ़िल्मी गीतों के अग्रणी गायक न होते तो क्या होते.शर्तिया कह सकता हूँ किसी घराने के बड़े उस्ताद होते या बेगम अख़्तर,तलत मेहमूद,मेहंदी हसन और जगजीतसिंह की बलन के ग़ज़ल गायक होते.भरोसा न हो तो मुलाहिज़ा फ़रमाइये ये ग़ज़ल .क्या तो सुरों की परवाज़ है और क्या सार-सम्हाल की है शायरी की.रफ़ी साहब ने इन रचनाओं को तब प्रायवेट एलबम्स की शक़्ल में रेकॉर्ड किया था जब किशोरकुमार नाम का सुनामी राजेश खन्ना नाम के सुपर स्टार को गढ़ रहा था.रफ़ी साहब ने इस समय का बहुत रचनात्मक उपयोग किया. स्टेज शोज़ किये,भजन रेकॉर्ड किये और रेकॉर्ड की चंद बेहतरीन ग़ज़लें.हम कानसेन उपकृत हुए क्योंकि दिल को सुकून देने वाली आवाज़ हमारे कलेक्शन्स को सुरीला बनाती रही.ऐसी कम्पोज़िशन्स को गा गा कर न जाने कितने गुलूकारों ने अपनी रोज़ी-रोटी कमाई है.अहसान आपका मोहम्मद रफ़ी साहब आपका हम सब पर.और हाँ इस ग़ज़ल को सुनते हुए ताज अहमद ख़ान साहब के कम्पोज़िशन की भी दाद दीजिये,किस ख़ूबसूरती से उन्होंने सितार और सारंगी का इस्तेमाल किया है...हर शेर पर वाह वाह कीजिये हुज़ूर..रफ़ी साहब जो गा रहे हैं.

6 comments:

महेन said...

अरे वाह संजय जी, मज़ा आ गया। क्या इत्तेफ़ाक है… अभी कुछ दिनों पहले ही मैनें भी यह ग़ज़ल अपने यहाँ डाली थी। गायकी की बात हो और रफ़ी साहब की बात न हो तो बात बनती नहीं।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बिल्कुल ठीक लिखा है भाई
सितार....सारंगी....शे'र...और
रफी साहब का
खूबसूरत अंदाज़....वाह !!!
गज़ब का कंपोजिशन और
लाज़वाब पेशकश.
=============
शुक्रिया.

Unknown said...

इस सुंदर चयन का धन्यवाद|

Ashok Pande said...

हमेशा की तरह संजय भाई की नायाब पेशकश!

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

ये गज़ल मेरे भी प्रिय गज़लों में से एक है। मैंने इसे अपने ब्लाग पर पहले एक बार पोस्ट किया था। आपका ब्लाग अच्छा लगा।

Krishna said...

Maza aa gya sun kar ...mai to apne aap ko rok nahi paya or ek ek link pe click karke phir se khojne laga koi dusre bhi mil jaye aisa hi ...aap ko bahut bahut dhanyabad