Friday, August 22, 2008

इन्हें कोई काश ये बता दे, मकाम ऊंचा है सादगी का

यूनुस भाई ने आज जो सिलसिला चालू किया है, मुझे उम्मीद है सुख़नसाज़ पर अब और भी विविधतापूर्ण संगीत की ख़ूब जगह बनेगी. ५ मई १९६७ को रिलीज़ हुई पाकिस्तानी फ़िल्म 'देवर भाभी' से एक गीत सुनिये आज मेहदी हसन साहब की आवाज़ में. हसन तारिक़ द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में रानी और वहीद मुराद मुख्य भूमिकाओ में थे. फ़ैयाज़ हाशमी के गीतों को इनायत हुसैन ने संगीतबद्ध किया था.



ये लोग पत्थर के दिल हैं जिनके
नुमाइशी रंग में हैं डूबे

ये काग़ज़ी फूल जैसे चेहरे, मज़ाक उड़ाते हैं आदमी का
इन्हें कोई काश ये बता दे, मकाम ऊंचा है सादगी का

इन्हें भला ज़ख़्म की ख़बर क्या कि तीर चलते हुए न देखा
उदास आंखों में आरज़ू का ख़ून जलते हुए न देखा
अंधेरा छाया है दिल के आगे हसीन ग़फ़लत की रोशनी का

ये काग़ज़ी फूल जैसे चेहरे, मज़ाक उड़ाते हैं आदमी
इन्हें कोई काश ये बता दे, मकाम ऊंचा है सादगी का

ये सहल-ए-गुलशन में जब गए हैं, बहार ही लूट ले गए हैं
जहां गए हैं ये दो दिलों का क़रार ही लूट ले गए हैं
ये दिल दुखाना है इनका शेवा, इन्हें है अहसास कब किसी का

ये काग़ज़ी फूल जैसे चेहरे, मज़ाक उड़ाते हैं आदमी
इन्हें कोई काश ये बता दे, मकाम ऊंचा है सादगी का

मैं झूठ की जगमगाती महफ़िल में आज सच बोलने लगा हूं
मैं हो के मजबूर अपने गीतों में ज़हर फिर घोलने लगा हूं
ये ज़हर शायद उड़ा दे नश्शा ग़ुरूर में डूबी ज़िन्दगी का

ये काग़ज़ी फूल जैसे चेहरे, मज़ाक उड़ाते हैं आदमी
इन्हें कोई काश ये बता दे, मकाम ऊंचा है सादगी का

6 comments:

राज भाटिय़ा said...

आशोक जी, गीत बहुत ही सुन्दर लगा, सुनाने के लिये धन्यवाद, आज कल ऎसे गीत कहा

अमिताभ मीत said...

अशोक भाई,

आज ही क्यों पोस्ट कर दिया इस गीत को ?? पूरा का पूरा गीत ही QUOTE करना चाहता हूँ लेकिन क्या करूं.. ...रिवाज नहीं है ऐसा ! लेकिन इतना दोहराने से रोक नहीं सकता ख़ुद को ....

ये काग़ज़ी फूल जैसे चेहरे, मज़ाक उड़ाते हैं आदमी का
इन्हें कोई काश ये बता दे, मकाम ऊंचा है सादगी का

ये सहल-ए-गुलशन में जब गए हैं, बहार ही लूट ले गए हैं
जहां गए हैं ये दो दिलों का क़रार ही लूट ले गए हैं
ये दिल दुखाना है इनका शेवा, इन्हें है अहसास कब किसी का

मैं झूठ की जगमगाती महफ़िल में आज सच बोलने लगा हूं
मैं हो के मजबूर अपने गीतों में ज़हर फिर घोलने लगा हूं
ये ज़हर शायद उड़ा दे नश्शा ग़ुरूर में डूबी ज़िन्दगी का

बहुत बढ़िया ... वाह !!! एक और गुजारिश है ... एक और गाना मेहदी हसन का (जहाँ तक मुझे पता है, फ़िल्मी है) कहीं से जुगाड़ करिए ....

"ऐ रोशनियों के शहर बता .... उजियारों में अंधियारों का ... ये किस ने भरा है ज़हर बता .....? "

Udan Tashtari said...

वाह!! आनन्द आ गया. आभार.

PREETI BARTHWAL said...

धन्यवाद अशोक जी गीत वाकई खूबसूरत है

PREETI BARTHWAL said...

धन्यवाद अशोक जी गीत वाकई खूबसूरत है

sibtain said...

ये tune इंडिया में कापी हुआ
तुम्हारी नज़रों में हमने देखा
वफ़ा की शबनम झलक रही है